जनाब ये ज़िन्दगी है

15-05-2025

जनाब ये ज़िन्दगी है

खान मनजीत भावड़िया 'मजीद’ (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

जी लो आज और कल हरदम बेझिझक
जनाब हमें ज़िन्दगी बार-बार नहीं मिलेगी
जीवन में ढेर सारे ग़म और कहीं कहीं ख़ुशी है जनाब
ग़म लेकर बैठे तो तुम हमेशा उदास रहो, 
ख़ूबसूरत है जनाब ज़िन्दगी हर पल ख़ुश रहो
ज़िन्दगी भर हर पल तुम्हें याद रहे ऐसी जियो
ग़म के पल याद हो या ना हो ख़ुशी के पल ज़रूर करो याद
पर ख़ुशियों और ग़म के हर पल हमेशा याद रहेंगे जनाब
जात-पाँत धार्मिक भेदभाव को ख़त्म करो, 
घुल मिल कर चलते रहो भाईचारा क़ायम कर
आपस में लड़ते रहोगे कब तक यूँ ही हर रोज़
प्रेम से रहना सीखो मोहब्बत का पाठ पढ़ाया करो
नफ़रत की ज़ंजीर को तोड़कर आगे बढ़ते हुए
जीवन में आनंद लेना सीखो आगे बढ़ते हुए
साम्प्रदायिक दुश्मन को पछाड़ तो सबको आगे बढ़ते हुए
भाईचारे की तरह रहना सीखो आगे बढ़ते हुए
ज़िन्दगी नहीं मिलेगी दोबारा यूँ व्यर्थ ना गँवाओ
ग़मों को भूलकर उदासियों को भूलकर ख़ुशियाँ लाओं
ख़ुशहाली में रहना सीखो मिल जुल कर रहो
ग़मों को पछाड़ कर और ख़ुशी से जीना सीखो जनाब

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