माँ बस इक बार . . .
डॉ. पुनीत शुक्ल(माँ के श्री चरणों में समर्पित)
इक बार तू वापस आ जा माँ, इक बार गले तू लगा जा माँ
इक बार तू चुंबन लेकर के, मेरा अंतस महका जा माँ।
इन साँसों का स्पंदन बन, फिर जीवन ज्योति जला जा माँ
अपने अंचल की छाया कर, मुझे मीठी नींद सुला जा माँ।
इक बार तू वापस आ जा माँ . . .
कुछ खेल-खिलौने बाक़ी हैं, कुछ कंपट-टॉफी बाक़ी हैं
तेरी वो प्यार भरी घुड़की, और क-ख-ग भी बाक़ी है।
मेरी सिलेट मेरी खड़िया बन, मेरी गुरु बनना बाक़ी है
मेला जाने हेतु फैले हाथों में, कुछ पैसे रखना बाक़ी है।
इक बार तू वापस आ जा माँ . . .
कुछ कही-अनकही बाक़ी है, कुछ सुनी-अनसुनी बाक़ी है
पापा की डाँट लगाने पे, तुझसे लड़ना भी तो बाक़ी है।
कुछ अश्रु अभी-भी हैं बाक़ी, कुछ भाव अभी-भी हैं ज़िन्दा
तेरे चले जाने बाद के वो, कुछ घाव अभी-भी हैं ज़िन्दा।
इक बार तू वापस आ जा माँ . . .
अनगिनत कोशिशों बाद भी माँ, मैं तुझे कहीं नहीं पाता हूँ
तकता तारों को भोर तलक पर, तुझे खोज नहीं पाता हूँ।
हाँ वापस आने हेतु यदि तू, कोई डगर अगर न पा पाये
तो इतनी कृपा दृष्टि रख माँ, मुझे अपने पास बुला पाये
इक बार तू वापस आ जा माँ . . .
मैं तेरा प्यारा बेटा हूँ, तेरे बिना नहीं रह पाऊँगा
तेरे आने की आस लिए, मैं बिना मरे मर जाऊँगा
मेरे विस्मृत जीवनपथ पर, बन धवल चाँदनी छा जा माँ।
इक बार तू वापस आ जा माँ . . .