काश! मैं पापा जैसा होता . . .
डॉ. पुनीत शुक्ल
काश! मैं पापा जैसा होता
श्याम वर्ण छोटे क़द पर भी
उन्मुक्त हँसी और पापशून्य मन लिए हुए इठलाता चलता
काश! मैं पापा जैसा होता . . .।
जहाँ मैं उठता, जहाँ बैठता चौपालों का मंच सजाता
सबको मोहपाश में खींचे अपनी ओर बुलाता लाता
काश! मैं पापा जैसा होता . . .
जीवन के इस महासमर में भीष्म पितामह जैसा लड़ता
औरों की मुस्कान की ख़ातिर अपनी हानि सहन कर जाता
काश! मैं पापा जैसा होता . . .।
समस्याओं का अंतिम पड़ाव बन मन के घाव का मरहम बनता
कभी लरज़ से, कभी गरज से सबको सही राह पर लाता
काश! मैं पापा जैसा होता . . .
मेरे पापा मेरा कौशल मेरा यौवन, मेरा जीवन
मैं भी ऐसा कुछ कर पाता मैं भी वैसा कुछ कर पाता
काश! मैं पापा जैसा होता . . .