काश! मैं पापा जैसा होता . . .

15-09-2023

काश! मैं पापा जैसा होता . . .

डॉ. पुनीत शुक्ल (अंक: 237, सितम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

काश! मैं पापा जैसा होता 
श्याम वर्ण छोटे क़द पर भी
उन्मुक्त हँसी और पापशून्य मन लिए हुए इठलाता चलता
काश! मैं पापा जैसा होता . . .। 
 
जहाँ मैं उठता, जहाँ बैठता चौपालों का मंच सजाता
सबको मोहपाश में खींचे अपनी ओर बुलाता लाता
काश! मैं पापा जैसा होता . . . 
 
जीवन के इस महासमर में भीष्म पितामह जैसा लड़ता
औरों की मुस्कान की ख़ातिर अपनी हानि सहन कर जाता
काश! मैं पापा जैसा होता . . .। 
 
समस्याओं का अंतिम पड़ाव बन मन के घाव का मरहम बनता
कभी लरज़ से, कभी गरज से सबको सही राह पर लाता
काश! मैं पापा जैसा होता . . . 
 
मेरे पापा मेरा कौशल मेरा यौवन, मेरा जीवन
मैं भी ऐसा कुछ कर पाता मैं भी वैसा कुछ कर पाता
काश! मैं पापा जैसा होता . . . 

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