लघुकथा के मानदंडों पर खरी उतरतीं मर्मस्पर्शी लघुकथाएँ

15-04-2022

लघुकथा के मानदंडों पर खरी उतरतीं मर्मस्पर्शी लघुकथाएँ

डॉ. अखिलेश पालरिया (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

पुस्तक: लिखी हुई इबारत
लघुकथाकार: ज्योत्स्ना 'कपिल'
प्रकाशक: अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
संस्करण: 2019
पृष्ठ: 126
मूल्य: ₹ 250

बरेली निवासी, वरिष्ठ साहित्यकार ज्योत्स्ना 'कपिल' द्वारा विभिन्न विधाओं में लेखन के अतिरिक्त लघुकथा में विशिष्ट कार्य तथा सम्मान प्राप्त करने व अपने लघुकथा संग्रह—'लिखी हुई इबारत' की लघुकथाओं में आदमी को 'आदमी' बनाने की पहल साफ़ दिखाई देती है। जिनमें स्वार्थ के रिश्तों के अलावा विषमताएँ हैं, चुटीले व्यंग्य और टेढ़े-मेढ़े रास्ते व हैवानियत है, ग्लानि एवं संकल्प भी हैं तो नारी को नकारता पुरुष का अहं तथा राजनीति का दोगलापन है, साथ ही हैं प्रेरक प्रसंग। इन लघुकथाओं में भेड़िया बने आदमी का यथार्थ है तो विभिन्न दुष्प्रवृत्तियों के कारण मन में उपजा, हाहाकार मचाता क्रन्दन पाठक हृदय को चोटिल कर देता है। 

रिश्तों पर आधारित जानदार लघुकथाओं में ’मिठाई’ का कड़वा सच है वहीं ’ममता’ में पितृतुल्य बड़े भाई जो गाँव में दो साल से सूखे की मार झेल रहे थे, जब शहर में नौकरी कर रहे छोटे भाई से एक लाख रुपये की माँग करते हैं तो पत्नी के जन्मदिन पर बतौर गिफ़्ट डायमंड ख़रीदने वाला छोटा भाई शहर के ख़र्चों का हवाला देते हुए ख़ुद की बीमारी का बहाना बनाता है। इस पर बड़े भाई का ममता भरा स्वर, “तू चिंता मत कर। ठीक से अपना इलाज करवा। ज़रूरत हो तो बता देना, हम गाय बेच देंगे।” पाठकों को द्रवित कर देता है। छोटा भाई यह सुन कर अपने को धिक्कारते हुए जब डायमंड लौटाने आभूषण की दुकान की ओर बढ़ जाता है तो रिश्ते को बचाने का लेखिका का यह स्तुत्य प्रयास लघुकथा को उच्च शिखर पर स्थापित पर देता है। 

रिश्तों पर आधारित अन्य लघुकथाएँ—'अहसास', 'बुज़दिल', 'बुनियाद', 'हिसाब', 'कृष्ण चरित' भी अत्यन्त प्रभावी बन पड़ी हैं। इनमें 'बुजदिल' में लड़के की सच्ची मित्र जो उसकी पत्नी न बन सकी थी, अपने उसी मित्र से यह सुन कर हक्की-बक्की रह जाती है कि उसके संतान न होने पर दादी किसी अन्य लड़की से उसकी शादी की बात करने लगी है तो महिला मित्र का संवाद उल्लेखनीय बन पड़ा है:

“तुम्हारे ख़ून में स्पेशल क्या है? कौन से महाराणा प्रताप या शिवाजी तुम्हारे यहाँ पैदा हुए हैं? तुम्हारे वंश का चलना इतना ज़रूरी क्यों है? एक ऐसा बुज़दिल, जो बेहिसाब मोहब्बत के बावजूद भी घरवालों की मर्ज़ी के खिलाफ़ अपनी पसंद की लड़की से शादी की हिम्मत नहीं जुटा पाया, जो अपनी बेगुनाह बीवी के साथ खड़ा नहीं हो पा रहा।” 

उक्त लघुकथा नारी अत्याचार पर भी मुखर है। 

इसी प्रकार 'आईना' में 50 से ऊपर लड़कियाँ फ़ेल करने वाले मामूली शक्ल ओ सूरत, पक्के रंग के बेटे की माँ जब लड़की वालों को कहती है कि उनके बेटे की एक ही डिमांड है कि लड़की सुन्दर हो . . . इस बार तीखे नाक-नक्श वाली लड़की में वह उसके रंग पर उँगली उठा देता है तो लड़की की सखी कह उठती है, “बबुआ जी, मेरे ख़्याल से आईना तो ज़रूर होगा आपके घर में, अगर उसे एक बार ध्यान से देख लिया जाता, तो लड़की ढूँढ़ने का ये सिलसिला बहुत पहले ख़त्म हो चुका होता।” 

ज्योत्स्ना जी की लघुकथाओं के विषय विविध हैं। जैसे, 'बारूद से जन्नत तक' व 'कश्मकश' में राष्ट्रद्रोह से उपजी मानसिकता है। 'किस ओर? ' में आधुनिक शिक्षा पर कटाक्ष है। 'रोबोट' बाल सुलभ चेष्टाओं से उपजी लघुकथा है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पर 'चुनौती', अभिभावकों को कटघरे में खड़ा करती लघुकथाएँ हैं—'हरे काँच की चूड़ियाँ', 'दंश' व 'खाली हाथ'। राजनीति का दोगलापन पर 'स्टिंग ऑपरेशन', अन्न की बर्बादी पर 'संकल्प', समाज की दूषित मानसिकता पर 'बाँझ', पुत्री के जन्म पर 'इंसाफ़' व आत्महत्या पर लघुकथा—'तमसो मा ज्योतिर्गमय'। इसी तरह पारिवारिक दायित्वों पर प्रेरक लघुकथा है—'टूटते कगार'। 

लेखिका ने लघुकथा के क्षेत्र में बहुत काम किया है; उनकी लघुकथाएँ इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं कि ये लघुकथा के मानदंडों पर खरी उतरती हैं अतः वे अपनी रचनाधर्मिता के आधार पर नवोदितों के लिए मार्ग प्रशस्त करने की उपजाऊ भूमि भी तैयार कर रही हैं। 

ज्योत्स्ना 'कपिल' अपनी लेखन शैली, प्रवाह एवं शिल्प से भी ख़ासा प्रभावित करती हैं। 

पुस्तक का कलेवर आकर्षक है। प्रूफ़ की त्रुटियाँ न के बराबर हैं। 

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