काटो काटो पेड़ अनगिनत, उन्नति होगी

15-08-2024

काटो काटो पेड़ अनगिनत, उन्नति होगी

बृज राज किशोर 'राहगीर' (अंक: 259, अगस्त द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

काटो काटो पेड़ अनगिनत, उन्नति होगी। 
फ़ाइल पर हो गए दस्तख़त, उन्नति होगी। 
 
पुरखों ने जो वृक्ष लगाए थे दशकों में, 
उन सबको खा गई हुकूमत, उन्नति होगी। 
 
अपने हाथों से विनाश का बीज बो रहे, 
देख नहीं पा रहे असलियत, उन्नति होगी। 
 
किस विकास के लिए प्रकृति का इतना दोहन, 
क्यों ऐसा कर रही सल्तनत, उन्नति होगी। 
 
क़ुदरत से जो पाया सब बर्बाद कर दिया, 
कैसे मिले ख़ुदा की रहमत, उन्नति होगी। 
 
गति के लिए कुमति को साध लिया मानव ने, 
चाह रहा है हर सहूलियत, उन्नति होगी। 
 
दूर-दूर तक छाँव नहीं है ‘राहगीर’ पर, 
नष्ट हो गई हरी-भरी छत, उन्नति होगी। 

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