बूँदों का संगीत
बृज राज किशोर 'राहगीर'टिप टिप गिरती
बूँदों का संगीत।
होता है
कानों को सुखद प्रतीत।
झोंके चार
हवा के आकर
चले गए
तन को सहलाकर
भुला न पाए
तपता हुआ अतीत।
आयें बादल
ढोल बजाकर
बरस पड़ें
बिजली चमकाकर
तभी लगेगा
हुई ताप पर जीत।
जीवन में ज्यों
सुख दुख का क्रम
यूँ ही
आते जाते मौसम
सदा सदा से
यही रही है रीत।