चुप्पी

डॉ. हर्षा त्रिवेदी (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

मुझे लगता था
कि चुप हो जाने से
मैं बच जाऊँगा
लेकिन
ऐसा होता नहीं है
कुछ कचोटता है
सालता है
टीसता रहता है
कुछ टूटता रहता है
अंदर ही अंदर। 

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