चुप्पी
डॉ. हर्षा त्रिवेदी
मुझे लगता था
कि चुप हो जाने से
मैं बच जाऊँगा
लेकिन
ऐसा होता नहीं है
कुछ कचोटता है
सालता है
टीसता रहता है
कुछ टूटता रहता है
अंदर ही अंदर।
मुझे लगता था
कि चुप हो जाने से
मैं बच जाऊँगा
लेकिन
ऐसा होता नहीं है
कुछ कचोटता है
सालता है
टीसता रहता है
कुछ टूटता रहता है
अंदर ही अंदर।