बदलते रिश्ते 

01-03-2024

बदलते रिश्ते 

श्यामल बिहारी महतो (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

“मैं तुम्हें बेटा कहूँ या साढ़ू . . .?” बाप रामदीन भरी पंचायत में इकलौते बेटे राधेश्याम से बार-बार पूछता रहा। 

और बेटा राधेश्याम बार बार यही कहता रहा, “आप मेरे बाप हो और बाप ही रहोगे . . .!” 

राधेश्याम राधा की ओर देख रहा था। और राधा-राधेश्याम की ओर। 

इतिहास के पन्नों में लिखा जाने वाला यह एक अनोखा और ऐतिहासिक पंचायत फ़ैसला होने जा रहा था। 

ऐसा मामला न कभी किसी ने देखा था न सुना था। पंच हैरान और असमंजस में डूबे नज़र आ रहे थे। पर पंचायत में औरतों की भागीदारी चूतड़ में ताल देने जैसी ही लग रहा था। उधर युवाओं के बीच हवाबाज़ी जैसा माहौल था। इन सबसे बेख़बर रामदीन कपार पर हाथ धरे एक कोने में बैठा हुआ था या यूँ कहिए कि बेटे राधेश्याम ने उसे कोना पकड़ा दिया था। जहाँ रह-रह कर उसकी कानों में उसके बचपन के दोस्त महेश बाबू की कही बातें आ आ कर टकरा रही थीं जैसे कभी-कभी पानी की लहरें पत्थरों से टकराती हैं।

“रामदीन, तुम दोनों हर वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी के दिन राधा और राधेश्याम को राधा-कृष्ण बना देतो हो, अगर बड़े होकर ये दोनों सचमुच के राधा कृष्ण बन घूमने लगे तब क्या करोगे—कभी कभी बचपन की आदतें छूटने की बजाय और गहरी होती जाती हैं, ऐसा कई बार देखा सुना गया है . . .!”

“अरे नहीं महेश बाबू!” रामदीन हँसा था, “ऐसा थोड़े न होता है, बचपन खेलने कूदने के दिन होते हैं, बड़ा होने पर सब रिश्तों में बँध जाते हैं। तुम्हारी सोच फ़ुज़ूल है।”

“देखते हैं आगे आगे होता है क्या!”

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घटना डोमनीडीह की है। इस गाँव में हमेशा कुछ न कुछ नया प्रयोग होता रहा है। सालों पहले इसी तरह की एक पंचायत बैठी थी तब केसु महतो की ज़मीन हड़पने के लिए उसकी इकलौती पुत्री को उसी गाँव के घनश्याम ने अपहरण कर लिया और एक सप्ताह अपने साथ रखा। पंचायत बैठी। पंचों ने लड़की से इज़हार लिया। लड़की बोली, “घनश्याम ने मेरी इज़्ज़त के साथ खेल लिया है अब दूसरे को खेलने कैसे दें? यही मेरा मरद होगा।” अंधे को क्या चाहिए दो आँखें। घनश्याम और उसका बाप यही तो चाहता था। उसके बाद क‍इयों ने। इस तरह का प्रयोग किया और सफल रहा था पर राधा और राधेश्याम वाला प्रयोग इस पंचायत के लिए बिल्कुल नया था—नथ उतारने जैसा ही . . .! 

दो दिन पहले रामदीन थाने में जाकर बेटे राधेश्याम पर कुल-ख़ानदान को धोखा देने के मामले को लेकर केस कर दिया था। बयान पर लिखवाया—“मेरे बेटे राधेश्याम ने, हमारे कुल-ख़ानदान की नाक कटवा दी है। उसने वो नीच काम किया है जो पीढ़ियों से हमारे ख़ानदान में किसी ने आज तक नहीं किया है। मेरी चल अचल सम्पत्ति में अगर इसको हिस्सा चाहिए तो राधा को उसे छोड़ना होगा—उसे भूलना होगा . . .!”

बेटे ने बाप को ईंट का जवाब पत्थर से दिया। बयान में लिखवाया, “राधा मेरा बचपन का पहला और इकलौता प्यार है। राधा को मैं भूल जाऊँ ये हो नहीं सकता और राधा मुझे चाहे भूल जाए—छोड़ दे यह मैं होने नहीं दूँगा। राधा है तो राधेश्याम है। राधा नहीं तो राधेश्याम भी नहीं। मैं बाप की सम्पत्ति को छोड़ सकता हूँ, राधा को नहीं . . .!”

थाने के बड़ा बाबू का सर चकराने लगा। जीवन में इस तरह का पहला केस था। जवाब में लिखा, “रामदीन, मामला बड़ा पेचिदा है, दोनों बालिग हैं और दोनों ने सांइस सीटी में शादी कर ली है। आज सांइस के आगे भूत-प्रेतों की कोई अहमियत नहीं रह गई है। क़ानून आपकी कोई मदद नहीं कर सकता है। आप पंचायत बुला लो। पंचायत ही इसका सही फ़ैसला दे सकती है!” 

दौड़ा-दौड़ा रामदीन पहुँचा था अपनी ससुराल। बूढ़े ससुर से कहने लगा, “अब आप ही कुछ कर सकते हैं, राधा को समझा बुझाकर अपने घर ले आइए, वरना हम दुनिया में अपना मुँह दिखाने लायक़ नहीं रहेंगे!”

“दामाद बाबू, पानी सर से ऊपर बहने लगा है, मेड़ बाँधना सम्भव नहीं है, अच्छा होगा खेत का किनारा ही खोल दो। ग़लत लाड़-प्यार का नतीजा कभी अच्छा नहीं हुआ है!” 

“बूढ़ा सठिया गया है . . .!” रामदीन कुढ़ते हुए ससुराल से निकल गया था। 

रामदीन रात भर करवटें बदलता रहा। सुबह हुई पर वह किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका था। 

बेटे ने क्या ख़ूब सबक़ दिया था। उस लाड़-प्यार का जो उसे बचपन में मिला करता था। 

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राधा जब पाँच साल की थी तो माँ मर गई थी। भोज काज के बाद जब रामदीन पत्नी, बेटे के साथ घर लौटने लगा था तो दरवाज़े के सामने राधा टूअर जैसी खड़ी हो गई थी। चम्पा देवी बड़ी बहन थी और राधा सबसे छोटी। उसके सीने में माँ जैसी ममता जाग उठी। लपक कर उसने राधा को गोद में उठा लिया और साथ ले आई। राधेश्याम राधा से एक वर्ष बड़ा था। इस तरह दोनों साथ-साथ बढ़े और पढ़े। 

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन चम्पा देवी राधा को राधा रानी बना देती और रामदीन राधेश्याम को कृष्ण की तरह सजा देता! और दोनों पति-पत्नी ख़ूब आनंदित होते। राधेश्याम को बाँसुरी बजाना नहीं आता परन्तु राधा से चुहल करना उसे ख़ूब आता था। यही चुहलबाज़ी और कृष्ण सी शरारत समय के साथ जाने दोनों को कब कितना क़रीब ले आई दोनों को, किसी को पता नहीं! पहले मिडिल स्कूल फिर हाई स्कूल और कॉलेज। एक ही मक़सद एक ही लक्ष्य, “दोनों जियेगें भी अब साथ साथ!” जब ये क़सम दोनों खा रहे थे तब दोनों कॉलेज के बाहर के एक होटल में समोसे खा रहे थे और ये गीत गुनगुना रहे थे, “छोड़ेंगे न हम तेरा साथ वो साथी मरते दम तक।” यह देख होटल वाला भी मुस्कुरा रहा था। यह अनोखा लगाव कब दोनों के लिए ज़रूरत बन गई, इसका एहसास तब हुआ जब एमसीए करने के बाद राधेश्याम को हैदराबाद की एक मल्टीनेशनल सॉफ़्टवेयर कंपनी से बुलावा आ गया। जाने लगा तो राधा रास्ता रोक खड़ी हो गई, “मेरा क्या होगा? तुम्हारे बग़ैर मैं यहाँ पानी बिन मछली की तरह तड़प तड़प कर मर जाऊँगी . . .!”

“चिंता मत करो राधा रानी, ज्वाइनिंग और रहने की व्यवस्था होते ही मैं तुम्हें हैदराबाद घुमाने के बहाने बुला लूँगा। फिर सोचेगें आगे हमें क्या करना है ।” और राधेश्याम चला गया था। राधा को वृन्दावन सूना-सूना लगने लगा। दिन भर कमरे में पड़ी रहती। चम्पा देवी के बहुत कहने पर कभी थोड़ा-बहुत कुछ खा लेती। पर खाने के वक़्त भी उसका सारा ध्यान राधेश्याम पर लगा रहता था। पन्द्रह दिन बीत चुके थे पर राधेश्याम का न फोन न मैसेज। राधा पागल हुई जा रही थी। शाम को फोन करने का उसने तय कर लिया था तभी दोपहर को उसके फोन पर मैसेज आया, “अपने सारे समानों की पैकिंग कर लो, सीट कन्फ़र्म हो चुकी है, कल शाम हैदराबाद एक्सप्रेस में बैठ जाना। मैं समय पर स्टेशन पहुँच जाऊँगा . . .!” 

राधेश्याम ने माँ को अलग से मैसेज किया, “माँ, राधा हैदराबाद की चार मीनार देखना-घूमना चाहती है, उसका रेलवे टिकट कन्फ़र्म है। कल शाम उसे हैदराबाद एक्सप्रेस में बिठा देंगी—प्लीज माँ . . .!” बेटे के आग्रह ने चम्पा देवी को आगरे का ताजमहल देखने की याद ताज़ा कर दी थी। तभी चम्पा देवी को दोनों के प्यार को समझ लेना चाहिए था पर वो तो राधा को गाड़ी में बिठाने ऐसे चली आई जैसे कोई माँ-बेटी को ससुराल विदा करने आती है—अब भुगतो! लो, अपना नाक अपने हाथ काटने चली।

राधा के राधेश्याम के पास पहुँचने के दो दिन बाद, घर में रामदीन के हाथ राधा और राधेश्याम के लिखे कई पत्र हाथ लगे तो रामदीन नींद से जागा। पत्र से ही उसने जाना कि राधा और राधेश्याम जीवन के रास्ते में दोनों कितने आगे निकल चुके हैं। क़दम दोनों का कितना आगे बढ़ चुका है . . . इतना तो द्वापर में कृष्ण राधा के क़दम भी नहीं बढ़े थे। रामदीन ने घर में किसी से कुछ नहीं कहा। मन में तय कर लिया। लौटने दो, दोनों को लोटे से पिटूँगा। 

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उधर राधा और राधेश्याम ने हैदराबाद सांइस सीटी में रिश्तों को ताक पर रखा और एक मंदिर में जाकर दोनों ने शादी कर ली। इसकी सूचना राधेश्याम ने फोन पर अपने बचपन के मित्र सुदामा को दी। जवाब में सुदामा ने कहा, “तुम दोनों गाँव लौटना नहीं। तुम्हारे प्यार का भण्डाफोड़ हो चुका है, तुम्हारा बाप साँप की तरह फुफकार रहा है, ‘आने तो दो!’ और तुम्हारी माँ अपने ममता की गला घोंटने की बात कहती फिर रही है, ‘प्यार करने के लिए राधा ही मिली थी उसे!’ आगे क्या करोगे तुम जानो . . .!” और फोन कट गया था। 

राधेश्याम राधा को लेकर नवरात्र में घर लौटा-पति पत्नी के रूप में! 

घर के दरवाज़े उन दोनों के लिए बंद मिले। 

“इस घर में इन दोनों के लिए कोई जगह नहीं है!” बाप दरवाज़े पर खड़ा हो गया था। 

सुदामा का घर ही उन दोनों के लिए ठिकाना बना था। पर अब तक . . .? सामने बड़ा सवाल खड़ा हो गया था। 

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“रामदीन . . . वो रामदीन . . . अरे भाई कहाँ खो गया है . . .?” 

मुखिया जी ने आवाज़ लगाई तो रामदीन सहसा उठ खड़ा हो गया, “जी मुखिया जी!”

“रामदीन आप एक बार फिर सोच लीजिए, दोनों जवान हैं और दोनों ने शादी कर ली है, आपको रखना है या नहीं . . .?” 

“हमने कह दिया मुखिया जी, इन दोनों ने जो अपराध किया है उसे मैं क्या कोई शहर भी इन्हें रहने की जगह न दे।”

“ठीक है, आप बैठ जाइए . . .” मुखिया जी ने पूरी पंचायत पर एक नज़र डाली फिर बोले, “राधेश्याम तुम दोनों ने जो अपराध और पाप किया है, एक पवित्र रिश्ते को कलंकित किया है, उससे पूरे समाज का सिर नीचा हुआ है। न छूटने वाला दाग़ लगाया है तुम दोनों ने उसकी सिर्फ़ एक सज़ा हो सकती है . . .!” मुखिया जी क्षण भर के लिए रुके थे। सामने राधेश्याम की माँ एक औरत से उलझ गयी थी। रामदीन ने जाकर उसे शांत किया। 

मुखिया जी कह रहे थे, “इस अपराध की एक ही सज़ा हो सकती है कि तुम दोनों को धक्के मार कर गाँव से बाहर कर दिया जाए। लेकिन मैं इसके पक्ष में नहीं हूँ। अपराध तो तुम दोनों ने किया है पर ऐसा भी नहीं कि उसे माफ़ नहीं किया जा सकता है।

“मेरा फ़ैसला है कि धँसा हुआ मंडपथान को तुम दोनों एक महीने के अंदर फिर से खड़ा कर दो—नया बना दो, इससे तुम दोनों का अपराध की सज़ा भी माफ़ हो जाएगी और पाप भी कट जाएगा! क्यों भाई लोग आप सबों की क्या राय है . . .?” 

“आपने ठीक कहा मुखिया जी!”

“हाँ, हाँ मुखिया जी हम सब भी आपसे सहमत हैं . . .”

इससे पहले कि राधेश्याम कुछ कहता उसका बाप बोल उठा, “यह भी कोई सज़ा हुई, मैं सहमत नहीं हूँ!”

“यह पंचायत का फ़ैसला है रामदीन केवल मेरा नहीं . . .!”

“हम तैयार हैं मुखिया जी . . .!” राधेश्याम ने कहा और राधा को लेकर सुदामा के घर की ओर बढ़ गया। 

रात को रामदीन पत्नी चम्पा से कह रहा था, “हमारा प्लान कामयाब रहा। तुम जो चाह रही थी बहू के रूप में तुम्हें राधा मिल गई। और मेरे इम्तिहान में मेरा बेटा पास हो गया . . .!”

“बड़ा कड़ा इम्तिहान लिया तूने मेरे बेटे का . . .!”

“सोने की तरह निखर भी तो गया . . .!”

“माँ! राधा मौसी को अपने घर की बहू बनाने के लिए आप दोनों ने इतना बड़ा खेल रचा!”

देखा बेटी संगीता दरवाज़े के सामने खड़ी कब से उन दोनों की सारी बातें सुन रही है . . .! 

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