आगे की सोच

15-08-2025

आगे की सोच

श्यामल बिहारी महतो (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

वह अपने हेल्पिंग नेचर के कारण पूरे गाँव में जाना जाता था। शादी-ब्याह हो या भोज-मरखी, सभी में अपने लिए काम की जगह वह ढूँढ़ ही लेता था। गाँव में किसी की मृत्यु होती, तब हाथ में टाँगी लिए सबसे पहले वो वहाँ खड़ा मिलता, उसी तरह शादी-ब्याह की अमड़ा-झमड़ा की तैयारी में वह तैनात रहता था। इसी नेचर ने उसे लोगों का चहेता बना रखा था। आर्थिक रूप से वह भले ही लोगों की मदद नहींं कर पाता, परन्तु शारीरिक तौर पर सबसे ईंट बालू की तरह जुड़ा रहता था। उसी किसना (कमलेश) के जीवन में एक दिन ऐसा मोड़ आया जिसे देख गाँव भर की सहानुभूति उस पर उमड़ आयी थी। 

पाँच साल पहले बी.ए. बेरोज़गार किसना काम की तलाश में कतरास गया था। एक पॉवर प्लांट से उसे बुलावा आया था। थी तो बड़ी कंपनी, लेकिन वेतन कम मिलने की वजह से लोग प्लांट में ज़्यादा दिन टिक नहीं रहे थे। मजबूरी वश किसना वहाँ किसी तरह टिका हुआ था। प्लांट से आधे किलो मीटर दूर प्लांट वर्करों के रहने के लिए सीटों वाला घर बनाया गया था। किसना भी उसी में एक ख़ाली कमरे में रहने लगा था। वहाँ से ठीक दो सौ गज की दूरी में एक कोल स्टोर था, “रघुनाथ कोल स्टोर” कोई पाण्डेय जी था इसका मालिक। दान-पुण्य और पूजा पाठ में इनका ज़रा भी लगाव नहीं था। मेहनत को विकास का पैमाना मानता था। बच्चों को भी यही सीख देता और जाति बंधन के ख़िलाफ़ मंच पर चढ़कर ख़ूब भाषण मारता था। इस कारण पत्नी से हमेशा उसे पंगा लेना पड़ता था। अलबत्ता बच्चे उनके साथ थे। मँझली बेटी साइंस से टेन-प्लस टू कर रही थी। नाम था काजल। एक दिन उसने बाप से कहा, “मुझे साइंस पेपर की ट्यूशन लेनी होगी, वरना परीक्षा में दिक़्क़तें आयेगी!”

“पढ़ाने वाला कोई मास्टर नज़र में है तो बोलो, लगवा देंगे,” बाप बोला। 

किसी ने किसना का नाम सुझाया था। शुरू में किसना इसके लिए राज़ी नहीं हुआ। फिर मन ने समझाया, ‘टका-पैसा कमाने निकले हो, कर लो’ वह मान गया। और मन लगा कर काजल को पढ़ाने लगा। धीरे-धीरे काजल का मन पढ़ाई के साथ-साथ किसना में भी रमने लगा। पर यह बात किसना को पता नहीं थी। पढ़ाई को लेकर काजल अक्सर किसना से ख़ूब तर्क-वितर्क करती। किसना भी उसकी हर बात का निदान ढूँढ़ता और उत्तर देता था। 

 प्लांट में छुट्टी के एक दिन काजल ने किसना को कतरास सिनेमा हॉल में ‘एक दूजे के लिए’ फ़िल्म दिखाने को लगभग विवश कर दिया, “देखो, यह फ़िल्म मुझे देखनी है, वरना पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगेगा!” वह तुनक उठी थी। बेचारा किसना को काजल की बात माननी पड़ी। शायद इसी तरह दो दिलों की दास्तान शुरू होती है। उसी दिन से काजल किसना की गोदी में बैठने और गले में बाँहें डालने के सपने देखने लगी। एक दिन उसने हद कर दी, ट्यूशन के दरम्यान काजल किसना के कंधे पर सर टिका कर बोली, “आई लव यू। कैसु . . .!”

“ओह! नो, आई नॉट लव यू!” किसना उछल कर खड़ा हो गया था, “यह असंभव है! मैंने तुमको पढ़ाने की हामी भरी है, प्यार करने वाला तुम्हें दूसरा मास्टर ढूँढ़ना होगा . . .!”

“आई लव यू . . .!” काजल ने फिर ज़ोर से कहा और किताब उठा कर चल दी। किसना अवाक्‌ खड़ा उसे देखता रहा। 

माँ बीमार है, कह किसना काम से दो दिन की छुट्टी लेकर घर चला आया। उसे काजल के बाप का डर सताने लगा था। इस तरह की लड़कियाँ भरोसे की क़ाबिल नहीं होती हैं! जीना हराम कर देती हैं, उसने सोचा था। उधर अचानक काम छोड़ चले जाने से काजल परेशान हो उठी। पढ़ाई से उसका मन उचट गया। कॉलेज जाती पर क्लास में मन नहीं लगता। हमेशा खोई-खोई रहने लगी। बाप पूछता, “बात क्या है?” पर उसका भी कोई जवाब नहीं देती। दो दिन वह प्लांट के गेट तक पहुँच गयी। पर वहाँ भी किसना का कुछ पता नहीं चला। 
चार दिन बाद किसना काम पर लौट आया था। परन्तु रहने की जगह उसने बदल ली थी। कंपनी क्वाटर छोड़ दिया था। इससे काजल और भी परेशान हो गयी। किसना का कोई सुराग़ उसके हाथ नहीं लग रहा था। फिर भी पागलों की तरह उसे ढूँढ़ती फिर रही थी ‌। किसी ने कतरास की डेली मार्केट का ज़िक्र किया। वह अब कॉलेज के बाद डेली मार्केट का चक्कर लगाने लगी। उसकी यह हालत देख बाप उस पर बिगड़ता, “यह क्या पागलपन हैं काजल, हमने तुम्हें उसके पास ट्यूशन पढ़ने भेजा था, प्यार की पढ़ाई पढ़ने नहीं!”

तभी एक दिन डेली मार्केट में किसना पर उसकी नज़र पड़ गई। वह भिंडी ख़रीद रहा था। किसना दौड़ती हुई पहुँची उसके पास, “तुम यहाँ भिंडी ख़रीद रहे हो और मैं पागलों की तरह तुम्हें ढूँढ़ती फिर रही हूँ!” और काजल किसना से लिपट गई थी। लोगों की निगाहें उन पर चिपक गई। किसना ने कतराते हुए ख़ुद को काजल से अलग किया, “यह क्या तमाशा है? मैं तुम्हें नहीं चाहता, मेरी औक़ात नहीं है इतनी, प्लीज़ मेरा पीछा छोड़ दो!” इसी के साथ किसना चल दिया था। सब्ज़ी वाले को पैसे भी नहीं दिए। उसने आवाज़ दी, “भाई साहब, सब्ज़ी के पैसे!”

“ओह! सॉरी भाई!” उसने लौट कर सब्ज़ी वाले को पैसे दिया और गोली की तरह एक ओर निकल गया। 

अगले दिन कतरास थाने में किसना दो घंटे से बंद था। सरेआम बाज़ार बेटी के साथ छेड़खानी करने का आरोप लगाते हुए रघुनाथ पांडेय ने शिकायत थाने में दर्ज कराई थी। सुबह पुलिस किसना को उठा कर थाने ले आई। काजल को पता चला तो थाने में आकर ख़ूब हंगामा किया, “पुलिस कमलेश को क्यों उठा लाई, उसका क्या दोष है? सारा दोष मेरा है, मैं कमलेश से प्यार करती हूँ, अगर वो मुझसे प्यार नहीं करता है तो आपको क्या हक़ बनता है उसे पुलिस दंड देने का? उसे छोड़ दीजिये नहीं तो मैं इसी थाने में जान दे दूँगी!”

“बेटी, मेरा क्या क़ुसूर है, मैंने तुम्हें जीने की आज़ादी दी तो क्या बाप की पगड़ी सारे आम उछालती फिरोगी . . .?” 

“बस आप बड़े बाबू से कह दो, वो कमलेश को छोड़ दें!”

और किसना को छोड़ दिया गया था। दूसरे दिन वह प्लांट तो गया, पर प्लांट मालिक ने उसे काम से निकाल दिया। इस नौकरी से उसे बड़ी राहत मिली हुई थी। अब फिर बेकार हो गया था। उसी समय बस पकड़ वह सीधे रामगढ़ पहुँचा। वहाँ एक पॉवर प्लांट में काम मिल जायेगा, ऐसा एक दोस्त ने कहा था। 

उधर खोजते-पूछते हुए काजल एक दिन किसना के घर पहुँच गयी। ख़ुद को उसने किसना का दोस्त बताया और आँगन की चौखट को प्रणाम कर उसने अंदर क़दम रखा। किसना की माँ आँगन में खटिया पर बैठी गंधारी साग निका (छांट) रही थी। काजल आगे बढ़ दोनों हाथ जोड़ उसकी पाँव लागी की और बग़ल में ही बैठ गयी। उसकी बूढ़ी माँ हड़बड़ा उठी और चकित भाव उसे देखने लगी। 

कोई सप्ताह दिन बाद किसना के मोबाइल पर गाँव से एक मैसेज आया, “तुम्हारे घर में तुम्हारी माँ के साथ एक लड़की देखी जा रही है। बोलने में हिन्दी और देखने में अंग्रेज़ी लगती है!” भेजने वाला उसका लंगोटिया यार रीतलाल था। रीतलाल मज़ाकिया लड़का था। मज़ाक-मज़ाक में किसी को कुछ भी बोल देता था। मोबाइल के चलन से उसका मज़ाक और बढ़ गया था। किसना ने भी उसे मज़ाक से ज़्यादा कुछ नहीं समझा। और काम पर लगा रहा। 

“गाँव में तुम्हारी माँ, एक लड़की को अपने साथ लिए घूमती है और खेत-खलिहान दिखाते चलती है!” दो दिन बाद उसके मोबाइल पर यह दूसरा मैसेज था। भेजने वाला भी वही था। किसना सोच में पड़ गया। क्या सचमुच मेरे घर में कोई लड़की है या यह चुतिया का पोता रीतलाल उसे चुतिया बना रहा है। कौन हो सकती है वह लड़की? वह ख़ुद से सवाल जवाब करने लगा। बड़की मौसी की बेटी सपना तो नहीं है, नहीं . . . नहीं, घर में उसकी शादी की तैयारी चल रही है, वो यहाँ कैसे हो सकती है? कहीं फुफू की बेटी कमली तो नहीं आ गयी है? पर उसकी भी तो बी.ए. की परीक्षा होने जा रही है, परीक्षा के दिनों में मेहमानी, कदापि नहीं—नेवर! फिर कौन हो सकती है? मन किया फोन कर रीतलाल से ही पूछ ले। लेकिन काम पर जाने का समय हो चुका था। वह काम पर चला तो गया, पर लड़की दिमाग़ में कुंडली मार बैठी रही। दोपहर को अकस्मात्‌ वह उछल पड़ा, पाँव के नीचे जैसे बिच्छू आ गया हो, “कहीं उसका पीछा करते हुए काजल तो नहीं पहुँच गयी, उस पागल लड़की का क्या भरोसा . . .?” 

शाम को फोन कर रीतलाल से ‘काजल’ ही है उसने कन्फ़र्म कर लिया था। फिर तो रात भर किसना सो न सका। राहत की बात यह थी कि अभी तक घर में पुलिस नहीं पहुँची थी न उसका बाप पहुँचा था। 

माँ बीमार है कह, प्लांट से उसने दो दिन की छुट्टी ले ली और घर पहुँचा। घर का पूरा हुलिया बदला हुआ पाया। 

“मैं अपने माता पिता का घर छोड़ जीवन भर तुम्हारा साथ निभाने इस घर में चली आई हूँ। भगवान् के लिए, अब अपने से दूर जाने कभी मत कहना। मरते दम तक साथ निभाऊँगी!” और काजल किसना से लिपट गई थी। 

उसी शाम गाँव के शिवमंदिर में, पंचायत की मौजूदगी में दोनों ने शादी कर ली। किसना सप्ताह दिन घर में रहा, फिर काम पर चला गया। अब वह सप्ताह में एक दिन घर आता। और अगली सुबह काम पर निकल जाता। किसना जब तक घर में रहता, काजल ‘लव-बर्ड’ बनी रहती। दोनों का प्यार देख, किसना की माँ सुगिया देवी फूले न समाती। दोनों के जीवन की गाड़ी चल पड़ी। साल भर बाद ही किसना ने एक नये पक्के मकान की बुनियाद रखी। लिंटर तक काम हुआ। तभी माँ का पैर फ़्रेक्चर हो जाने से घर का काम रुक गया तो रुका ही रह गया। उन्हीं दिनों घर में बच्चे की किलकारी गूँजी। कजरी माँ बन गयी। एक सुंदर सी बेटी को उसने जन्म दिया। काजल के प्रति किसना का प्यार और बढ़ गया। 

काजल की माँ जिसने घर छोड़ भाग कर किसने से शादी करने पर ग़ुस्से में कहा था “जीते जी अब काजल का मुँह नहीं देखूँगी! “

“तुम्हारा यह ग़ुस्सा फ़ुज़ूल है भाग्यवान! हमारे पूर्वज उन्हीं किसान घरों में याचक बन कर जाते थे, और अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। आज हमारी बेटी उसी एक यजमान घर की मालिकिन बन गयी तो इसमें बुरा क्या है? देखना हमारी बेटी वहाँ राज करेगी। अब ग़ुस्सा थूक दो और बेटी घर जाने की तैयारी करो-अबकी याचक नहीं अतिथि बन कर जायेंगे।!”और एक दिन काजल का माँ बनने की ख़ुशी में उसके माता-पिता ढेर सारे उपहार लिए पहली बार घर पधारे थे। दोनों की ख़ूब आव-भगत की गई। काजल की ख़ुशी चौगुनी हो गई। शादी में माँ बाप को बुलाया था। लेकिन तब किसी ने आना ज़रूरी नहीं समझा था। 

सड़कें अच्छी हों और बसें भी नयी हों तो कोई स्पीड ब्रेकर बसों की रफ़्तार को कम नहीं कर पाते। दो साल पूरा होते-होते काजल दूसरी बार माँ बनी। इस बार उसने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया। किसना की बूढ़ी माँ पोता आने की ख़ुशी में डेढ़ गोड़ से ही आँगन में नाचने लगी। 

उसके बाद के दो-तीन साल उस घर में किसी तरह का कोई उत्पादन नहीं हुआ। समय भी उस घर के प्रति मेहरबान बना रहा। किसना का इरादा था इस वर्ष अधूरे घर को पूरा करना। इसके लिए उसने जोड़-घटाव करना भी शुरू कर दिया था, कि तभी वो घटना घट गयी। जो किसी ने सोचा भी नहीं था।! 

दो दिन पहले अचानक से काजल घर से लापता हो गयी। लापता हो गई या लापता कर दी गई, यह भी किसी को पता नहीं था। कोई कहता राजू उसे भगा ले गया, तो कोई कहता था, कजरी ख़ुद उसके साथ भाग गयी है। गाँव में जितनी मुँह, उतनी बातें। उधर गाँव वालों की मानें तो राजू रांची में किसी बड़ी कंपनी में सुपरवाइज़र था और वहीं ज़मीन ख़रीद कर एक शानदार घर बना लिया था। पर सच किसी को पता नहीं था। हाँ, वह जब भी गाँव आता कजरी पर डोरे डालता। शहर की शानदार ज़िन्दगी के सपने उसे दिखाता। यह सिलसिला पिछले ढाई-तीन सालों से चल रहा था। लेकिन काजल आज तक उसकी झाँसे में नहीं आई थी। हाँ, तब काजल को अपना अधूरा घर और गाँव की रूखी-सूखी ज़िन्दगी मुँह चिढ़ाती-सी प्रतीत होती। ऐसा लगता गँवारू फटेहाल ज़िन्दगी से उकता भी रही थी। लेकिन तत्काल जीवन में बदलाव होगा, ऐसा उसे लग भी नहीं रहा था। पति से बहुत कुछ पाने की उम्मीद भी नहीं थीं। कहे तो गाँव के दमघोंटू जीवन से मुक्ति चाहिए थी उसे। ऐसा उसकी चाल-ढाल से प्रतीत होता। पर बदलाव का यह रंग-ढंग उस पर धीरे-धीरे चढ़ा था। पहले तो उसमें ऐसी कोई ऐब नहीं थीं। औरत की हर चाहत को हर मरद कभी पूरा नहीं कर सकता है। कमी-बेशी का रोना सदैव लगा रहता है। किसना और काजल के साथ भी यह था। किसना को यह सब पता था। पर वह चुप था। काजल पर अविश्वास करने जैसा उसके पास कोई कारण नहीं था। सो काजल पर किसना का पूरा भरोसा बना रहा। 

उसी काजल को घर से भागे दो दिन हो गए थे। मतलब चौबीस घंटे से ऊपर। उसकी घर वापसी की आस लगाए बैठा किसना का धैर्य जब जवाब दे दिया, तब उसने उठाया एक ऐसा क़दम जिसे देख गाँव वाले हैरान हो उठे थे! 

गाँव का चौराहा अभी जागा नहीं था। सुबह का दरवाज़ा खुलना अभी बाक़ी था। ठंड ने सभी को घरों में दुबका रखा था। उसी वक़्त ठंड को पीछे छोड़ते हुए किसना ने अपने डेढ़ साला बेटे महेश को गोद में उठाया और तीन साला बेटी कविता को साथ लिए कुल्हीमुंडा (चौराहा) की ओर बढ़ गया था। 

इसके पूर्व उसने अपने खलिहान से दो-तीन गोनछा पुआल और लकड़ियों का एक गठर चौराहे पर पहुँचा आया था। वह बहुत उत्तेजित मालूम जान पड़ रहा था और उसी उत्तेजना में हर काम भी करते जा रहा था वह। 

उगते सूरज के साथ गाँव की आधी आबादी उस चौराहे पर अब तक जमा हो चुकी थीं। सभी की आँखों में एक ही सवाल ‘किसना इतनी ठंड में करने क्या रहा है . . .?’ जवाब किसी के पास नहीं था। तभी वहाँ गाँव के नाई को लोगों ने आते देखा। लोग और हैरत में पड़़ गए, ‘यह नाई क्यों आया?’ 

लोग सोचने पर विवश थे। 

अब किसना पुतला बना कर तैयार खड़ा था। माथा छिलने के लिए नाई तैयार था। लोगों की जिज्ञासा चरम पर पहुँच चुकी थी। 

ठंड में अगहन की कँपकँपी थी। फिर भी भीड़ में कमी न थी। किसना लोगों का केन्द्र बिंदु बना हुआ था। सभी यह जानने का इच्छुक थे कि यह पुतला किसका है—और किसना इसे जलाने को उतावला क्यों हो रहा है? 

तभी शंभुवा काका सामने आया था। उसने पूछा, “किसना यह पुतला किसका है और तुम इसे जलाना क्यों चाहते हो . . .?” 

किसना ने बड़ी आहत नज़रों से शंभुवा काका की ओर देखा और फिर एक गहरी साँस लेते हुए आसमान की तरफ़ ताकने लगा। मानो किसी को अंतिम बार याद कर रहा हो। तभी भीड़ से उसने कहा, “यह मेरी पत्नी काजल का पुतला है, आप सबको मालूम होगा कि वह किसी के साथ भाग गयी है। मैं उसे बहुत चाहता था। लेकिन उसने मुझे धोखा दिया। वो मेरे इन दो मासूम बच्चों की माँ थी ‌। लेकिन अपने क्षणिक सुख और आनंद के लिए उसने ममता की गला घोंट दिया। अब वह हमारे लिए मर चुकी है ‌। पुतला जला कर अंतिम दाह संस्कार कर दूँगा!” बोलते-बोलते उसकी आवाज़ भारी होती चली गई थी। लोगों ने किसना को इसके पहले इतना भावुक कभी नहीं देखा था। 

पुतले पर किरोसिन डाल किसना अभी माचिस मारने ही वाला था कि किसी की तेज आवाज़ ने उसे रोक दिया, “रुक जाइए, पाँच मिनट रुक जाइए, फिर पुतले के साथ पुतले वाली को भी जला दीजिएगा!”

सहसा लोगों की नज़र आवाज़ की दिशा में उठती चली गई थी। उसे देख बहुतों को यक़ीन नहीं हुआ। और बहुतों को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था। एक अद्भुत दृश्य देख लोग-बाग भौचक थे। तभी भीड़ को चीरती हुई काजल किसना के सन्मुख आकर खड़ी हो गई थी। बोली, “आप लोग सोच रहे होंगे कि राजू गँवार मुझे भगा ले गया था, नहीं, मैं ही उस मरदूत को दौड़ा ले गयी थी। ताकि मैं उस कमीने की औक़ात और असलियत का सही-सही पता लगा सकूँ। ढाई-तीन साल से झूठ बोल-बोल के उसने मेरा कान पका रखा था। नाकोदम कर रखा था। तब मैंने उसकी सच्चाई जानने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसे लगा मैं उसकी बातों में आ गयी हूँ। चिड़िया जाल में फँस गयी है। बस में सीटी बजाते जा रहा था। रांची पहुँच कर सीधे होटल चलने को कहा। मैंने कहा होटल क्यों? अपने मकान में ले चलो, मैं ख़ुद तुम्हारे सामने अपनी हाथों से साड़ी उतारूँगी और हम वहीं मज़े से मिलेंगे। वह बहाने बनाने लगा। और होटल चलने पर ज़ोर देने लगा। मैं अड़ गई। वह डर गया!” काजल साँस लेने रुकी थी, “रांची में उस कमीने का न तो कोई घर है, न वह किसी कंपनी में सुपरवाइज़र है, वह तो एक मिठाई की दुकान में वेटर का काम करता है। शायद उसे पता नहीं था कि मैं भारत की बेटी हूँ। किसी से प्यार कर उसके साथ शादी कर सकती हूँ तो राजू जैसे लंपट की श्राद्ध भी करवा सकती हूँ। किसी शरीफ़ लड़की को बहला-फुसला कर भगाने और उसे धोखा देने की जुर्म में मैं उस दुष्ट को अंदर करवा आई हूँ। अब भुगते दो साल जेल की सज़ा!” बोलते-बोलते उसकी आवाज़ सख़्त होती चली गई थी। गाँव वाले काजल में साक्षात्‌ कपसा माँ का रूप देख रहे थे। 

“नावाडीह थाने में राजू को बंद करवा आई है भाभी, आज दस बजे उसे टेनुघाट जेल भेजा जायेगा!” काजल के पीछे खड़ा रीतलाल उस ख़बर की पुष्टि कर रहा था जैसे। 

“कैसु, मैं मोम की गुड़िया नहीं हूँ!” काजल किसना को प्यार से ‘कैसु’ कह कर पुकारती थी, “तुमने ऐसा सोच कैसे लिया कि राजू जैसे ओंगे-पोंगे के आगे मैं पिघल जाऊँगी। हमारे जीवन में वह काँटे की तरह निकल आया था। उसे निकाल बाहर फेंकना ज़रूरी हो गया था। ठीक है, मैंने तुम्हें अपने प्लान के बारे नहीं बताया। ग़लती हुई—पर आ गयी हूँ न, अब तुम चाहो तो पुतला दहन की जगह मेरा दहन कर दो—ऊफ तक नहीं करूँगी। प्यार किया है मैंने तुमसे!” और वह भीड़ के बीच ही बैठ गयी थी। 

“उस हरामी राजू का बाप भी एक नम्बर का ठग था,” शंभुवा काका ने किसना से कहा, “किसन भतीज, ग़ुस्सा थूक दो और बहू को घर ले जाओ, यह शेरनी है, शेरनी!”

“बहू ने बहुत बढ़िया काम किया है, गाँव की बहू-बेटियाँ उसको लेकर परेशान रहती थीं!” सोमरा बूढ़ी ने कहा। 

“काजल भाभी जिंदाबाद!” 

“भावी मुखिया जिंदाबाद!!”

लड़कों ने आवाज़ लगाई। 

किसना दो क़दम आगे बढ़ आया और काजल को गले लगा लिया फिर बच्चों को साथ लिए घर की ओर चल पड़ा था। 

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