आप-फिर एक बार
स्व. राकेश खण्डेलवाल
रूप है चाँद सा, रूप है सूर्य सा रूप तारों सा है झिलमिलाता हुआ
भोर की आरती सा खनकता हुआ और कचनार जैसे लजाता हुआ
आपका रूप है चन्दनी गंध सा जो हवाओं के संग में बहकती रही
रूप की धूप से आपकी जो सजा मेरा हर दिन हुआ जगमगाता हुआ।
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