होली पर्व पर एक लोकगीत
शकुन्तला बहादुर सखि, होरी ने धूम मचाई, महिनवा फागुन का।
देखो झूम झूम नाचे है मनवा, महिनवा फागुन का॥
हरे हरे खेतवा में, पीलीपीली सरसों,
टेसू का रंग नहीं, छूटेगा बरसों,
आज धरती का नूतन सिंगार। महिनवा फागुन का...
अबीर गुलाल की धूम मची है,
रंगों की कैसी फुहार चली है,
तन रंग गयो, हाँ मन रंग गयो,
तन रंग गयो मोरा साँवरिया। महिनवा फागुन का ...
कान्हा के हाथ, कनक पिचकारी,
राधा के हाथ सोहे, रंगों की थारी,
होरी खेल रहे बाल गोपाल। महिनवा फागुन का ...
बैरभाव की होरी जली है,
गाती बजाती ये टोली चली है,
सखि प्रेम-रंग बरसै अँगनवा। महिनवा फागुन का ...
सखि, होरी ने धूम मचाई, महिनवा फागुन का।
देखो झूम-झूम नाचे है मनवा, महिनवा फागुन का॥