घास के फूल
शकुन्तला बहादुरहरी घास में खिले हुए हैं, नन्हें नन्हें पीले फूल।
हरियाली के बीच चमकते, सूरज से पीले ये फूल॥
शोभा इनकी कम तो नहीं है, सूरजमुखी से हैं लगते।
पर नीचे उगने से ही ये, सदा तिरस्कृत से रहते॥
हाँ, गुलाब और ग्लैडूले पर, सभी लोग हैं नाज़ करें।
बिना नाम के इन फूलों पर, नहीं कोई भी नज़र करे॥
ऊँचे पद वाले धनिकों का, करते हैं सम्मान सभी।
झोपड़पट्टी में जो रहते, मिले उन्हें न मान कभी॥
देव-शीष पर चढ़ते हैं वे, घर में शोभा पाते हैं।
नन्हें से ये फूल सदा, पैरों से रौंदे जाते हैं॥
ऊँच-नीच का भेद-भाव ये, नहीं कभी भी सुखकारी।
हो समत्व का भाव अगर तो, सुखी रहे दुनिया सारी॥