एक नाबालिग़ लड़की
जयचन्द प्रजापति ‘जय’
एक नाबालिग़ लड़की
अपनी माँ से निवेदन करती है,
माँ, मेरा ब्याह कर दो
अब बड़ी हो गयी हूँ
खाना बना लूँगी
सास ससुर की ख़ूब देखभाल करूँगी
कोई शिकायत नहीं आयेगी।
अब तुम्हारा दुख देखा नहीं जाता
अब तुम्हें अपनी चिंता से मुक्त करना चाहती हूँ
तुम फटी साड़ी में
जब बाहर जाती हो
तुम्हारे चेहरे की झाइंयाँ
आँखों का पीलापन
बिल्कुल दुबली सी दिखती हो
जब कोई काम नहीं मिलता
सड़कों पर हाथ फैलाते देखती हूँ
तुम्हारे होंठों की पपड़ी
मेरे लिये दो रोटी की जुगाड़ करती हो
मेरे लिए तुम डाँट सहती हो
कोई गड़बड़ी होती है
जब मालिक तुम्हारे ऊपर
गंदी नज़र फेरता है
जल्दी से ब्याह कर दो
कोई गहने नहीं माँगूँगी
चिंता मत करना माँ
पापा होते तो
ब्याह के लिये नहीं कहती तुमसे
पढ़ने के लिये दूर शहर जाने को कहती
अभी दो साल और रुक जा
तभी ब्याहना
जब अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊँ
पर माँ
तुमको हँसते हुए देखना चाहती हूँ
इसलिए ब्याह करना चाहती हूँ।