ये चिंताएँ, ये दुविधाएँ

15-04-2021

ये चिंताएँ, ये दुविधाएँ

आदित्य तोमर ’ए डी’ (अंक: 179, अप्रैल द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

ये चिंताएँ, ये दुविधाएँ
क्षण भर में ही मिट जायेंगीं
तुम अपने नयनों को 
मेरे नयनों से मिलवा देना 
दो अधरों को मिलवा देना 
दो अधरों से परस्पर 
दो देह आलिंगन कर 
एक हो जायेंगीं
 
ये चिंताएँ, ये दुविधाएँ
क्षण भर में ही मिट जाएँगी
 
हम खोये होंगें अपनी-
अपनी आँखों में 
एक दूजे की यादों में 
एक दूजे की बातों में 
बातों-बातों में हम 
यूँ समीप आयेंगें
बातें घट जाएँगी,
साँसें बढ़ जाएँगी
 
ये दुविधाएँ, ये चिंताएँ
क्षण भर में ही मिट जाएँगी।
 
इन चढ़ती-बढ़ती साँसों पर 
अपना संयम न होगा 
हृदय विजेता होगा 
मस्तिष्क का बंधन न होगा 
जब मन से मन मिल जाएगा,
आशाएँ बढ़ जायेंगीं
 
ये चिंताएँ, ये दुविधाएँ 
क्षण भर में ही मिट जायेंगीं
तुम अपने नयनों को मेरे 
नयनों से मिलवा देना।

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