तालाबन्दी - 4

01-07-2020

तालाबन्दी - 4

डॉ. महेश आलोक (अंक: 159, जुलाई प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

चाहता हूँ कि यह उम्मीद आज ही घटित हो


साबुन से हाथ धोते हुए बीस सेकेन्ड्स
की गिनती न करनी पड़े
भले ही हाथ धोने में बीस सेकेन्ड्स से ज़्यादा का समय लगे


यह पछतावा न हो कि मैंने उसे स्पर्श कर गुनाह कर दिया
मैंने कहीं पढ़ा है कि जब तक पछतावा रहता है
गुनाह जीवित रहता है


पत्नी आज इतनी स्वादिष्ट खीर बनाए
कि मेरे खाने के पहले चन्द्रमा उसमें डुबकी लगाकर कहे
कि आज तुम्हारी पत्नी का हाथ
तुमसे पहले मैं चूमूँगा


सुबह सुबह सूरज खिड़की पर उतरकर कहे
कि देखो मैं जीवित हूँ और तुम्हारे लिए
मेरा कोई दूसरा संस्करण आकाश में
उपलब्ध नहीं है


कितना अच्छा हो कि किसी भूखे को
मैं भूखा हूँ इस बात को छिपाने के लिए यह न कहना पड़े
कि वह नवरात्र का व्रत रखे हुए है


मैं डरा हुआ नहीं हूँ यह उतना ही सच हो
जितना यह कि आज मंगलवार नहीं
सोमवार है

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