संस्कार

15-12-2019

संस्कार

सन्दीप तोमर (अंक: 146, दिसंबर द्वितीय, 2019 में प्रकाशित)

घड़ी दो बजे का वक़्त बता रही थी, लकवे ने उसे इस क़दर मजबूर कर दिया था कि बिना सहारे के उठकर वाशरूम जाना भी दूभर था। रमा भी तो जीवन की नैया बीच में छोड़कर हमेशा के लिए चली गयी। रमा को याद कर सत्यनारायण परेशान हो उठे, कितना ख़्याल रखती थी। रमा उनके आज साथ होती तो हाजत के लिए इतना सोचना न पड़ता। सत्यनारायण यादों का गोता लगा पुनः यथार्थ में लौट आये और यथार्थ ये था कि वे पिछले चार साल से लकवे के कारण चलते चलने-फिरने के क़ाबिल नहीं रहे।

उन्होंने देखा, उनका एकमात्र सहारा उनका वॉकर उनकी पहुँच से इतना दूर है कि उस तक पहुँचना उनके लिए मुश्किल है। बेड से उतर उन्होंने हवाई चप्पल पहनने की कोशिश की, पाँच मिनट की जद्दोजेहद में वे उस काम में विजयी हुए तो सरकते हुए वॉकर तक पहुँचे।

वाशरूम उनके कमरे से नज़दीक ही है लेकिन कमरे से अटैच न होने के कारण वे वॉकर से चलकर दरवाज़े तक आये, दरवाज़ा खोल ज्यों ही वाशरूम की ओर बढे, उनका पैर फिसला और वे गिर पड़े। गिरने की आवाज़ सुन बराबर के कमरे में सोया इकलौता बेटा उठकर बाहर आया। उसकी पत्नी भी हड़बड़ाहट में उठ कर बाहर आ गयी।

“बाबूजी, आपको कितनी बार कहा है कि अकेले वाशरूम न जाया कीजिये, आप ख़ुद को सम्भाल नहीं पाते, फिर क्यूँ. . .?” सहारा देकर उठाते हुए बेटे ने पिता से शिकायत की।

“दिव्यम, तुम देर रात तक ऑफ़िस से लौटते हो, फिर खाना खाते हुए तुम्हे रोज़ ग्यारह बज जाते हैं; तुम्हें जगाकर मैं और ज़्यादा तंग नहीं करना चाहता,“ नम आँखों से सत्यनारायण ने जवाब दिया।

“बाबूजी, याद है मुझे, जब बीटेक की तैयारी के समय आप मेरे साथ सिर्फ़ इसलिए जागते थे कि मुझे पढ़ते हुए बीच में भूख न लगे। अपनी नींद ख़राब कर आप मेरे लिए कॉफ़ी का मग तैयार कर किचेन से लाते थे। माँ जब दिन भर के कामों से थक जाती थी तब आप रात में मेरे लिए माँ बन जाते थे। आपको सुबह उठकर ड्यूटी भी जाना होता था। कुछ भी तो नहीं भूला मैं।“

सत्यनारायण कुछ देर मौन हो गए। सहारा देकर वाशरूम की ओर बढ़ते हुए बेटे ने कहा, “बाबूजी आपको कोई तकलीफ़ न हो इसलिए मैंने वर्किंग वीमेन की बजाय घरेलू-संस्कारी लड़की से शादी की, आपकी बहु आपको कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने देती फिर क्यूँ आप ख़ुद को कष्ट देते हैं?”

“बस बेटा, और कितना कष्ट दूँ तुम दोनों को? मैं अभागा ख़ुद तो कष्ट भोग रहा हूँ, तुम्हें और दिन-रात तंग करता रहूँ?“

बेटा पिता को हाजत करा उनके कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ा, पीछे से बहू की आवाज़ आई, “पिताजी, आपके बेड के ठीक ऊपर ही घंटी लगी है, आज सुबह ही मैंने उसकी बैटरी बदल दी थी। जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत हो, बस एक बार बटन दबा दिया कीजिये। मैं या फिर ये आपके कमरे में आ जायेंगे।“

“हाँ बाबूजी, आप क्यों उस घण्टी का बटन भूल जाते हैं?” बेटे ने सवाल किया।

सत्यनारायण के होंठ बुदबुदाये, मानो रमा को कह रहे हो, "रमा तुम कितना डरती थी कि अगर मैं आपसे पहले चली गयी तो आप बाक़ी जीवन सब कुछ कैसे कर पाओगे? देखो तुम्हांरे बेटे-बहू कितना ख़्याल रखते हैं मेरा।“

उनकी आँखों से दो आँसू उनके गालों पर ढलक गए। बेटा-बहू दोनों ही नहीं समझ पाए कि ये आँसू ख़ुशी के थे या दुःख के।
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें