उस दिन अनायास ही गुज़रा था एक रॉकेट 
जामडहरी के हरे-हरे 
धान खेतों के ऊपर हल्के-हल्के धारीदार वाले 
नीले बादलों के बीच से
देख कर जिसे तुम सहसा चीख पड़ी थी 
'अरे वो देखो रॉकेट! 
कितना अच्छा लगता है न 
उड़ते हुए रॉकेट को शून्य आकाश में यूँ देखना'


आँखों में कौतुहलता लिए 
एक टक देखते रहे रॉकेट को 
हम दोनों
और अपने चरम वेग से गतिमान 
एक सीधी सफ़ेद रेखा खींच कर फ़लक पे 
कहीं विलीन हो गया था 
वो रॉकेट अनंत आकाश में...
पर यक़ीन मानो 
विलीन नहीं हुआ   
तुम्हारा वो कौतूहल चेहरा मेरी यादों से कभी,
आज भी उभर आता है 
स्मृतियों से 
जब भी गुज़रता है
कहीं सिर के ऊपर से कोई रॉकेट


उसी उत्सुकता से निहारता हूँ 
फ़लक पर आज भी 
उसके विलीन हो जाने तक। 

1 टिप्पणियाँ

  • 1 Sep, 2019 08:53 PM

    वाह

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