न्याय
आदित्य तोमर ’ए डी’न्याय नहीं हो
सकता वैयक्तिक,
न्याय होता है
हित,
न्याय को सार्वजनिक
रहने दो,
वैयक्तिक न्याय होता
है स्वार्थ,
स्वार्थ हितकारी नहीं
हो सकता।
न्याय नहीं हो
सकता वैयक्तिक,
न्याय होता है
हित,
न्याय को सार्वजनिक
रहने दो,
वैयक्तिक न्याय होता
है स्वार्थ,
स्वार्थ हितकारी नहीं
हो सकता।