हीरा या काँच 

01-02-2020

हीरा या काँच 

डॉ. नीरू भट्ट (अंक: 149, फरवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

डॉ. सोनी शहर के एक जाने माने नेत्र-विशेषज्ञ है। नियमित जाँच के लिए मैं अपने पति के साथ उनके अस्पताल गयी थी। जब मैं उनके कक्ष में गयी तो मैंने देखा एक बुज़ुर्ग दम्पति बैठे हुए थे। डॉक्टर साहब बुज़ुर्ग महिला की आँखों की जाँच कर रहे थे। जाँच पूरी होने पर वह उस बुज़ुर्ग महिला के पति से बोले, "देखिये इनका मोतियाबिंद परिपक्व हो चुका है, तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा। अगर अभी ऑपरेशन नहीं हुआ तो आँखों की ज्योति हमेशा के लिए चली जाएगी।" 

तभी बुज़ुर्ग सज्जन बोले, “डॉक्टर साहब हम पंद्रह दिन के बाद अमेरिका जा रहे हैं, छह महीने बाद वापिस आएँगे। उसके बाद ऑपरेशन करवाएँगे।” 

डॉक्टर सोनी बोले, “छह महीने में तो बहुत देर हो जाएगी, आप अमेरिका जाने से पहले ऑपरेशन करवा लो। पंद्रह बीस मिनट में ऑपरेशन हो जाता है, फिर सिर्फ़ सात दिन का परहेज़ है। उसके बाद आप लोग आराम से अमेरिका जाइये, दूसरी आँख का ऑपरेशन अमेरिका से वापिस आकर करवा लेना।" 

सज्जन बोले, “डॉक्टर साहब अभी एक साल पहले हमने अपने बिटिया की शादी की है। मेरे प्रोविडेंट फ़ण्ड का सारा पैसा उसमे लग गया। गाँव में ज़मीन का एक टुकड़ा था, बेटे की पढ़ाई के लिए हमने वह ज़मीन का टुकड़ा बेच दिया था। डेढ़ साल पहले मैं सेवा निवृत हो चुका हूँ। मुझे तेरह हज़ार रुपये मासिक पेंशन मिलती है, उसमें से आठ हज़ार रुपये घर ख़र्च में चले जाते हैं। सिर्फ़ पाँच हज़ार रुपए बचते हैं। पिछले सात-आठ महीनों से मैं कुछ रुपये रुपये पत्नी के इलाज के लिए बचा रहा था। लेकिन अब अमेरिका जाना है तो ख़ाली हाथ नहीं जा सकते, बेटा बहू के लिए कुछ उपहार ले कर जायेंगे। हमारी बहू ने हमें इतनी बड़ी ख़ुशख़बरी दी है, उसने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया है। और फिर पहली बार हम दादा-दादी बने हैं, तो बच्चो के लिए कुछ उपहार ले कर जायेंगे।” फिर थोड़ा रुआँसा सा हो कर बोले, “पिछले चार सालों से बेटा भारत नहीं आया है। बेटा, बहू और बच्चों को देखने का बहुत मन है। फिर बेटे ने टिकट भी तो भेजी है, उसने इतना ख़र्चा किया है, वो बर्बाद नहीं होना चाहिए।“

डॉक्टर साहब एक बड़े दिल वाले इंसान है। उनकी अच्छाई के क़िस्से मैंने पहले सुन रखे थे, आज देख भी लिया। डॉक्टर साहब बोले, “मैं पैसों की कमी के कारण इलाज नहीं रोकूँगा। इनकी एक आँख का कुल ख़र्चा सत्ताइस हज़ार रुपये का होगा। आप अभी ऑपेरशन करवा लीजिये, फिर आराम से अमेरिका जाइये, बच्चों से मिलकर आइये, और आने के बाद पैसे दे देना।“ 

बातों-बातों में डॉक्टर साहब ने पूछा, “वैसे आपका बेटा करता क्या है”? 

इतना सुनते ही उन सज्जन की आँखों में एक चमक आ गयी जैसे वह इस प्रश्न का इंतज़ार ही कर रहे हों और उत्तर देने के लिए व्याकुल हों। बहुत गर्व के साथ बोले, “डॉक्टर साहब मेरा बेटा तो हीरा है हीरा, पंडित दीन दयाल पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है उसने। टेक्सास में पेट्रोलियम इंजीनियर है। साठ लाख रुपए का सालाना पैकेज है उसका।“ पिता जब अपने बेटे का गुण गान कर रहे थे तभी मैंने उनकी पत्नी की ओर देखा, बेटे की बेरुख़ी और पैसों की तंगी उसकी आँखों में साफ़-साफ़ झलक रही थी। 

मैं सोच में थी कि सातवें पे कमीशन के बाबजूद अगर पिता को तेरह हज़ार पेंशन मिलती है तो वह ज़रूर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी रहे होंगे। कितनी मुश्किलों से उन्होंने उस लड़के को पढ़ाया-लिखाया होगा। आज बेटा सम्मानजनक स्थिति में पहुँच गया है और इस लायक़ है कि अपनी माँ का इलाज किसी अच्छे डॉक्टर से करा सकता है, फिर क्यूँ नहीं? मानती हूँ कि इस जगह तक पहुँचने के लिए उस लड़के ने जी-तोड़ मेहनत की होगी, लेकिन माँ पिताजी की मेहनत, प्यार और आशीर्वाद के बिना क्या ये संभव था? मैं समझ नहीं पायी कि वास्तव में उनका बेटा हीरा है या महज़ कांच का एक टुकड़ा, जो साठ लाख सालाना कमाई के बावजूद अपनी माँ के इलाज के लिए साठ हज़ार रुपये ख़र्च नहीं कर सकता!

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