ज़रूरी नहीं

15-04-2022

ज़रूरी नहीं

दीपक (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मेरे शब्द हमेशा चाहते हैं
तुम्हें आकार देना
मेरे वाक्य हमेशा चाहते हैं
तुम्हारी आँखों की चर्चा करना
दरअसल, 
तुम्हारी उपस्थिति मेरे अंग-अंग में है
 मुझे रोको मत
मुझे लिखने दो
तुम्हें
तुम्हारी आँखों को
तुम्हारी बातों को
तुम्हारी यादों को
क्योंकि ज़रा सा मन भटकने से
केशवदास जैसे आचार्य भी
स्त्री के सुंदर मुख और आभूषण को
अंलकार का रूप कहते हैं
लेकिन, वे यह नहीं जानते कि
हर एक स्त्री जन्म के पहले ही
एक पूरी कविता होती हैं
जहाँ अलंकार जैसे 
तत्त्व की कोई ज़रूरत नहीं! 

2 टिप्पणियाँ

  • स्त्री जन्म से पहले ही पूरी कविता होती है जिसे अलंकार की कोई जरूरत नहीं रहती। इस अद्वितीय विचार को हमारे सामने रखने के लिए साधुवाद।

  • ..
    13 Apr, 2022 01:07 PM

    अद्भुत।

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