प्रेम की स्मृतियाँ
दीपकमैं कह भी देता कि
मैंने पूरा पढ़ लिया तुम्हें
पर, उन आँखों का क्या . . . ?
जिन्हें पढ़ना मुझे बहुत पसंद है
जिनमें लिखे हैं मैंने अनगिनत प्रेम।
सुनो! कभी झाँकना मेरी आँखों में
तुम्हारी नज़रों के झरोखों से
तुम्हें अपनी स्मृतियों के
अलावा कुछ नहीं मिलेगा . . . !