भाषा और साहित्य
दीपक
अब यूनिवर्सिटी ख़त्म हुई
पाँच साल भाषा व साहित्य
जानने और समझने के बाद
अब ऐसा महसूस हो रहा है
कि यहाँ तक आना बेहद ज़रूरी था
बेहद मर्यादित गुज़रा यह पल
बहुत सीखने के साथ गुज़ारा यह जीवन
जैसे माँ की गोद में बैठ
एक शिशु सीखता है
जीवन की परिभाषा
जिसका पहला नियम ही है
बोलने से ज़्यादा सुनना
सावधान होके
माँ ने सिखाए
मर्यादित भाषा के साथ
साहित्य के मर्म
वह कहती है
भाषा और साहित्य
दोनों ईश्वर की हथेली हैं
उन्हें साथ लिये बिना
हम नहीं बजा पाएँगे
जीवन-रूपी ताली!