ये जवानी
जय प्रकाश साह ‘गुप्ता जी’
ना नींद पूरी, ना शौक़ पूरे,
जेब खली, ख़्वाब अधूरे,
कशमकश की ये कहानी,
और नहीं कुछ, ये जवानी॥
दिन गुज़रता, रात है आती
टूटे ख़्वाबों की बरसात है लाती,
चिंता कल की, बड़ी परेशानी,
और नहीं कुछ, ये जवानी॥
बदलती सोच, बढ़ता संकोच,
सब कुछ पाना, यही है सोच,
बढ़ते दोस्त, सिमटती ज़िंदगानी,
और नहीं कुछ, ये जवानी॥
संगिनी को पाना लक्ष्य जीवन का,
ख़ुशियों से भरना आँचल उसका,
मन में चलती यही कहानी,
और नहीं कुछ, ये जवानी॥
माँ-बाप का नाम, है रौशन करना,
इसी आशा में आगे बढ़ना,
मेरे जीवन की यही रवानी,
और नहीं कुछ, ये जवानी॥