शिक्षक 

जय प्रकाश साह ‘गुप्ता जी’ (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

आओ आज याद करें, 
एक ऐसे व्यक्तित्व की। 
पंचतत्व में रहकर भी, 
जिसे ख्याति है देवत्व की॥
 
दीपक सा ख़ुद जलकर, 
ज्ञान का प्रकाश फैलाये। 
हम बच्चों के जीवन से, 
अज्ञानता को दूर भगाए॥
 
कमियाँ हमारी दूर कर, 
गुणों को हैं निखारते। 
ज्ञान की निर्मल गंगा से, 
जीवन हमारी सँवारते॥
 
घर बार की उलझन छोड़ कर, 
अपनी तकलीफ़ों से लड़कर। 
ध्यान हमारा रखते हैं, 
अपने बच्चो से भी बढ़कर॥
 
कभी पिता बन सख़्ती करते, 
अभी माता बन दुलारते, 
कभी दोस्त बन बातें कर, 
घंटों संग गुज़ारते॥
 
काँटे चुनकर राह से हमारी 
मंज़िल सरल बनाते हैं। 
अनुभव अपनी जोड़कर 
शिखर तक पहुँचाते हैं॥
 
इस अचंभित दुनिया में 
हर प्रश्न के हो तुम ही उत्तर। 
कृतज्ञ सदा रहेंगे हम, 
नमन है आपको हे गुरुवर॥

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