मेरे अन्दर भगवान सभी
जय प्रकाश साह ‘गुप्ता जी’
माना मैं तुच्छ इंसान सही,
मेरी कोई पहचान नहीं,
विश्व विजय कर जाऊँ कब,
मेरे अन्दर भगवान सभी॥
जग के सारे तानों के,
मेरे सभी अपमानों के,
हृदय-मन मंथन करके,
मैं हलाहल विष पी करके,
नीलकंठ कहलाऊँ तभी।
मेरे अन्दर भगवान सभी॥
मर्यादा पुरुषोत्तम बन के,
ख़ुशियों का अपनी त्याग करूँ,
एक पिता के वचन की ख़ातिर,
कई वर्षों का वनवास सहूँ,
ज़िन्दा है मुझमे राम अभी।
मेरे अन्दर भगवान सभी॥
भक्ति मार्ग पर मैं चलूँ,
बल-बुद्धि का मिश्रण मैं बनूँ,
राम नाम की शक्ति का,
चहुँ ओर गायन मैं करूँ,
मैं बन जाऊँ हनुमान कपि,
मेरे अन्दर भगवान सभी॥
जग में प्रेम का सार बनूँ,
जग जैसा तस रूप धरूँ,
सुदर्शनधारी हो कर भी,
सौ पापों को मैं क्षमा करूँ,
मुझमें गीता उपदेश बन बसी,
मेरे अन्दर भगवान सभी॥