ख़ालीपन
जय प्रकाश साह ‘गुप्ता जी’
बिना बात के ख़ालीपन,
भीतर है कुछ सूनापन,
बिना बात के ख़ालीपन॥
कुछ छूट गया, कुछ बिसर गए,
कुछ अपने–पराए बिछड़ गए,
रह–रह कर कसक करे है तन,
बिना बात के ख़ालीपन॥
जीवन भी सही, साथी भी सही,
रिश्ते-नाते घराती भी सही,
खाए जाये कुछ सूनापन,
बिना बात के ख़ालीपन॥
यार सही, प्यार सही है,
घरबार सही, परिवार सही है,
फिर क्यों लगता अकेलापन?
बिना बात के ख़ालीपन॥