वो बूढ़ा
सुनील गज्जाणी
अब भी अपना ठेला लिए
आ जाता है
मेरे शहर के एक
लुप्त हो चुके ढूँढ़ा मेले के दिन
मानो, श्रद्धांजलि देने आया हो।
अब भी अपना ठेला लिए
आ जाता है
मेरे शहर के एक
लुप्त हो चुके ढूँढ़ा मेले के दिन
मानो, श्रद्धांजलि देने आया हो।