विश्व गाथा पत्रिका जनवरी-मार्च 2020
दीपक गिरकरविश्व गाथा पत्रिका आम आदमी, आम पाठक की ख़ास पत्रिका है। विश्व गाथा मात्र एक पत्रिका नहीं है, यह साहित्य सेवा का अनुष्ठान है। पंकज जी का समर्पण हर अंक को विशिष्ट बना देता है। जनवरी-मार्च 2020 अंक में विचारोत्तेजक संपादकीय से लेकर तमाम रचनाएँ कुछ न कुछ इंगित करती हैं। संपादकीय "हमारा मूल मंत्र वसुधैव कुटुम्बकम" में जो मुद्दे उठाए हैं वे विचारणीय हैं। इंसान अब इतना सहज-सरल नहीं रहा। विडंबनाएँ ख़ुद ही पैदा की हैं और उसी के जाल में वह फँस गया है। प्रकृति से छूटता हुआ इंसान सहज नहीं रह सकता। विश्व गाथा पत्रिका के संपादक श्री पंकज त्रिवेदी ने ठीक ही कहा है कि आज के दौर का इंसान इतना स्वार्थी हो गया है कि अपने अस्तित्व को दूसरों पर हावी होने के लिए बेक़रार है। हमारी समाज व्यवस्था में कहीं भी सामान्य इंसान का महत्व नहीं है। हम "ग्लोबल विलेज" शब्द का प्रयोग करते हैं मगर मूल मंत्र - "वसुधैव कुटुम्बकम" का अनुसरण नहीं करते।
पत्रिका का आवरण पृष्ठ कलात्मक व आकर्षक है। इस अंक की सभी रचनाएँ ताज़गी से भरी हुई हैं। अंक की सभी कहानियाँ अलग-अलग मिज़ाज और भावनाओं की कहानियाँ हैं। इस अंक की कुछ विशिष्ट कहानियों की चर्चा –
इस अंक की सभी कहानियों के पात्र आँखों के सामने चलते-फिरते नज़र आये। कथाकार स्नेह देव की "बबूल का पेड़" बेहद अच्छी कहानी है। यक़ीनन स्नेह देव जी इस कहानी द्वारा स्त्री की व्यथा, स्त्री छवि की जिजीविषा सामने लाती है। कहानी अपनी संवेदनाओं के साथ पाठकों को बाँधे रखती है। मुकेश दुबे की कहानी "खामोश चिमनी" शक्कर मिल के परिवेश को लेकर इतनी संवेदनशील है कि शक्कर मिल के सारे दृश्य मूर्त्त हो उठते हैं। आशा शैली की "पवित्तर-अपवित्तर" कहानी दिल को छू गई। जिस प्रकार फिल्म "लगे रहो मुन्ना भाई" में फ़िल्म का मुख्य पात्र महात्मा गांधी से संवाद करता है उसी तरह डॉ. ममता बनर्जी की कहानी "अनामिका का स्वप्न" में कहानी की मुख्य पात्र अनामिका अपने स्वप्न में कवि गुरु रवींद्रनाथ, महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस और महान गणितज्ञ डॉ. प्रशांत चंद्र महलनबीस से गिरिडीह की पावन भूमि, वन, प्राकृतिक, सांस्कृतिक संपदा, पारसनाथ पहाड़ी के जंगल की जड़ी-बूटियाँ, गिरिडीह का गौरवमयी अतीत, बांग्ल भाषा पर संवाद करती है। सुरेंद्र रघुवंशी की कहानी "डाका" एक रात की घटना का वर्णन है। कथा सहज और पठनीय है। वंदना गुप्ता की कहानी "हींग लगे न फिटकरी और रंग चौखा" काफ़ी रोचक लगी। वैष्णवी वैष्णव की "ढल गया सूरज" एक युवती सिया और इंडियन आर्मी के स्पेशल फ़ोर्स में पोस्टेड अभिषेक की मर्मस्पर्शी प्रेमकथा है। इस कहानी का कैनवास बेहतरीन है। बंगाली कहानी "एक दिन" में कथाकार ने कहानी की मुख्य पात्र सोमा के माध्यम से लम्पट पति की कारस्तानियों और नारी उत्पीड़न की सूक्ष्मता से पड़ताल की है। इस रचना में कहानीकार ने मन के भीतरी तहों में सँजोए सच को अभिव्यक्त किया है।
इंदिरा किसलय की "पंख" लघुकथा प्रतीकात्मक लघुकथा है जो समाज को सीधे-सीधे आईना दिखाती है। लघुकथा "अनकहे रिश्ते" एक अप्रतिम रचना है। यह रचना भावुकता के सागर में भिगो देती है। ध्रुव सिंह "एकलव्य" की लघुकथा "गिरगिट" प्रदर्शन और कर्म के अंतर को बख़ूबी स्पष्ट करती है। इस अंक की अन्य लघुकथाएँ शिवराज सरहदी की "आम का बड़ा पेड़", जीतेंद्र शिवहरे की "सामुदायिक धर्मशाला", सुरेश सौरभ की "नए पुराने ग्रीटिंग्स", ध्रुव सिंह "एकलव्य" की "नौटंकी" मन को संवेदनाओं से भिगो देती हैं। साहित्य मनीषी डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला का प्रकृति प्रेम बहुत गहरा है। उनकी कविता "नदी! तुम घर पर नदी नहीं होती" इस रचना में सहजता, जीवन का स्पंदन, आत्मिक संवेदनशीलता प्रतिबिंबित होती है। खान मनजीत भावड़िया मजीद की कविता "लड़कियां कहां है सुरक्षित" सम-सामयिक है। श्री अशोक 'अंजुम' के मुक्तक अच्छे लगे। अंतर्मन में इनकी अनुगूंज बनी रहती हैं।
ऋचा फोगट की रचना "शाका लाका बूम बूम" बच्चों के लिए एक प्रेरक संस्मरण है। "हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद" डॉ. काकोली गोराई द्वारा लिखा गया शोध आलेख है। इस शोध आलेख में क्षेत्र एवं वर्ग के आधार पर प्रेमचंद के कथा साहित्य की सामाजिक वस्तु का उद्घाटन करने के साथ-साथ उनके कथा साहित्य की प्रवृत्तियों का और प्रेमचंदयुगीन भारतीय समाज की दशा का भी उद्घाटन किया गया है। नीरज कृष्ण का आलेख "आखिर अब हम वसंत में क्यों नहीं बौराते?" इस आलेख में लेखक ने वसंत ऋतु की सुंदरता, प्रकृति की ख़ुशबू का सुंदर चित्रण किया है। मेरा ऐसा विश्वास है कि इस आलेख को पढ़कर पाठक निश्चित ही आत्मविश्वास के साथ एक नयी उर्जा से भर जायेंगे। "समस्याओं से घिरा जीवन" वीणासिंह द्वारा लिखित आलेख में महिलाओं की समाज में स्थिति और उनकी त्रासदी को बख़ूबी बताया गया है। मीनाक्षी जोशी का "मौन अभिव्यक्ति दुनिया की सर्वश्रेष्ठ भाषा" रूस की यात्रा का संस्मरण आलेख है। इस संस्मरण में यह अभिव्यक्ति ग़ौरतलब है - नाजिया की याद के साथ बरबस याद आ जाती है महादेवी की लछमा जो पढ़ना-लिखना नहीं जानती थी फिर भी आँसू से भीगी उसकी हर चिट्ठी महादेवी तक पहुँची थी, याद आती है उनकी गौरा। जिसकी पनीली आँखों में महादेवी दुनिया के समस्त शास्त्र पढ़ लेती थी और याद आती है महादेवी की लिखी यह बात कि काश मनुष्य भी अन्य प्राणियों की तरह भाषा हीन होता, केवल आँखों से बात करता तो दुनिया के आधे से अधिक विवाद स्वत: समाप्त हो जाते। वरिष्ठ साहित्यकार श्री राम परिहार का "अभिसार- उत्सवा पृथ्वी और फागुन" एक अनूठा, मौलिक, आत्मीय अतरंगता की अनौपचारिकता से परिपूर्ण मनोहर शैली में लिखा गया एक ललित निबंध है। डॉ. संतोष बंसल द्वारा लिखित श्री भालका तीर्थ यात्रा संस्मरण एक प्रभावी एवं अनूठा संस्मरण है। इस संस्मरण को पढ़ते हुए मुझे उनके सहयात्री होने की अनुभूति हुई और साथ ही मैंने इस तीर्थ स्थान की धार्मिक महत्ता को जाना, यहाँ की आबोहवा को अपने अन्दर गहराई तक महसूस किया। प्रमोद कुमार तिवारी ने मशहूर कथाकार, कवि, उपन्यासकार, अनुवादक, निबंधकार, नाटककार स्व. गंगाप्रसाद विमल के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय करवाकर उन्हें अपने आलेख के माध्यम से भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है। मुमताज का "मेरी मां मेरी सृष्टिकर्ता" संस्मरण पढ़ा। संस्मरण उत्कृष्ट है। निस्संदेह हर व्यक्ति के लिए माँ का स्थान ईश्वर से ऊँचा है।
श्री गिरीश पंकज का सोशल मीडिया पर व्यंग्य "हमारा वाह-वाह ग्रुप जिंदाबाद" और श्री निर्मल गुप्त का व्यंग्य "बाबूभाई, वेलेंटाइन और तमाशबीन" धारदार और प्रखर हैं। पुस्तक समीक्षाओं के अंतर्गत कई नयी पुस्तकों से परिचय हुआ। पुस्तक समीक्षा के अंतर्गत कुमार सुरेश के व्यंग्य उपन्यास "तंत्र कथा" पर श्री धर्मपाल महेंद्र जैन, जहीर कुरेशी के गज़ल संग्रह "जिंदगी से बड़ा जिंदगी का समर" पर शाहिद "समर", डॉ. आशा सिंह सिकरवार के काव्य संग्रह "इस औरत के बारे में" पर प्रतिमा त्रिपाठी की, श्री समीर ललितचंद्र उपाध्याय के काव्य संग्रह "आर्तनाद" पर डॉ. प्रदीप उपाध्याय की, प्रवासी कथाकार डॉ. हंसा दीप के कहानी संग्रह "प्रवास में आसपास" पर श्री दीपक गिरकर सारगर्भित और अर्थवान समीक्षा पढ़कर इन पुस्तकों को पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ गई है। गर्भस्थ शिशु की चीख़ "द टैरेरिस्ट" फ़िल्म की समीक्षा दिल को छू लेती है। पंकज जी विश्व गाथा के माध्यम से नयी पीढ़ी के रचनाकारों को विशेष रूप से पहचान देकर प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस त्रैमासिक पत्रिका में साहित्य की लगभग सभी विधाओं को समाहित करके सुरुचिपूर्ण कलेवर देने में पंकज जी का संपादकीय कौशल प्रशंसनीय है।
दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर- 452016
मोबाइल : 9425067036
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com
1 टिप्पणियाँ
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बहुत सुंदर
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