वैचारिक विमर्श की समसामयिक कृति

01-07-2022

वैचारिक विमर्श की समसामयिक कृति

दीपक गिरकर (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

पुस्तक: समकाल के नेपथ्य में (निबंध संग्रह) 
लेखिका: डॉ. शोभा जैन
प्रकाशक: भावना प्रकाशन, 109-ए, पटपड़गंज गाँव, दिल्ली–110091
आईएसबीएन: 978-81-7667-425-6    
मूल्य: 275 रुपए

“इतिहास की जानकारी मनुष्य के भविष्य निर्माण के लिए होनी चाहिए इसलिए यह ज़रूरी है कि इतिहास में दर्ज हो चुकी सभ्यताएँ, संस्कृति, भाषा, साहित्य और कला सभी सुरक्षित होने के साथ पोषित और समृद्ध भी होती रहें।” संदर्भित पंक्तियाँ साहित्यकार डॉ. शोभा जैन के निबंध संग्रह “समकाल के नेपथ्य में” के एक निबंध “इतिहास की सिद्धि भविष्य की ओर हो” के अंतिम अनुच्छेद की हैं। उक्त पंक्तियाँ ऐतिहासिक विरासत को सहेजने, समृद्ध करने, पोषित करने की नवीन दृष्टि प्रदान करती हैं। इस आलेख की अंतिम पंक्ति में लेखिका लिखती है—इतिहास केवल म्यूज़ियम की शोभा बढ़ाने का नाम नहीं, सभ्यताओं संस्कृति का पुनर्सृजन करने का भी विषय है। इस पुस्तक की लेखिका विमर्श केंद्रित सम-सामयिक आलेख लेखन, पुस्तक समीक्षाओं के साथ महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में बौद्धिक विमर्श, गोष्ठियों एवं सेमिनारों में, साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में काफ़ी सक्रिय हैं। इस पुस्तक “समकाल के नेपथ्य में” में डॉ. शोभा जैन के लोकहित के ज्वलंत मुद्दों पर 55 निबंध संकलित हैं। इस पुस्तक का शीर्षक “समकाल के नेपथ्य में” अत्यंत सार्थक है। 

इस पुस्तक के निबंधों में लेखिका ने सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के विषयों जैसे राष्ट्रीय अस्मिता, उदारवाद, साम्यवाद, विस्तारवादी आर्थिक साम्राज्यवादिता, बाज़ार-युद्ध, सैन्यवाद, आतंक के गठबंधन, सांस्कृतिक आघात, जन-आक्रोश की बदलती राजनीति, हिंसक चेहरों की हृदयहीनता, सामान्यजन का पोषण, लोकतांत्रिक चेतना, मानवीय श्रम, रोज़गार, रोबोटी सभ्यता, महिला सशक्तिकरण, भाषा और साहित्य इत्यादि विषयों पर गहरे विश्लेषण के साथ तर्कसम्मत, व्यावहारिक और ठोस चिंतन बहुत ही मुखर ढंग से प्रस्तुत किए हैं। पुस्तक के सभी निबंध सटीक, समसामयिक होने के साथ स्थायी महत्त्व के हैं। इस पुस्तक की भूमिका वरिष्ठ समालोचक, साहित्यकार प्रो. बी.एल. आच्छा ने लिखी है। उन्होंने लिखा है, “निश्चय ही इन निबंधों में लेखिका का जाग्रत टिप्पणीकार जितना नेपथ्य के असल को सामने लाता है, उतना ही मानवीय विवेक के साथ प्रतिरोध की स्व:चेतना को भी। वे विचारधाराओं के बीच केवल चहलक़दमी नहीं करतीं, बल्कि उसके जीवन सापेक्ष सार्थक को वैचारिकी में लाती हैं। भीड़ के आक्रोश को, केवल बहुमत को नहीं देखती, बल्कि राजनैतिक निहितार्थों से अलग जन-संवेदन के करुण-पक्ष को साझा करती हैं। इसीलिए टर्निंग पॉइंट के साथ विवेक की पक्षधरता इन चिंतनाओं के मूल में है।”         

इस कृति द्वारा डॉ. शोभा जैन का बहुआयामी चिन्तन मुखर हुआ है। वे समसामयिक विषयों पर गहरी समझ रखती हैं। लेखिका ने सभी निबंधों में सन्दर्भ के साथ उदाहरण भी दिए हैं और तथ्यों के साथ गहरा विश्लेषण भी किया है। कुल मिलाकर यह कृति मानवीय चेतना एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों की गहन पड़ताल करती है। पुस्तक पठनीय ही नहीं, चिन्तन मनन करने योग्य, देश के कर्णधारों को दिशा देती हुई और क्रियान्वयन का आह्वान करती वैचारिक विमर्श की समसामयिक कृति है। “समकाल के नेपथ्य में” समकालीन निबंधों का सशक्त दस्तावेज़ है। 

दीपक गिरकर
समीक्षक
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड, 
इंदौर-452016
मोबाइल: 9425067036
मेल आईडी : deepakgirkar2016@gmail.com

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में