उम्मीदें

01-06-2022

उम्मीदें

वैदेही कुमारी (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

डूब रही सब उम्मीदें 
ना है आशा की किरणें 
क्या रहेगी बस अँधियारी 
या होगी भी सुबह नई 
मन तो कब का हार चुका 
हिम्मत भी साथ छोड़ रही 
लगता मुझको यही है ख़ुदा की मर्ज़ी 
बीत रहे दिन रातें भी हैं होतीं 
पर अब बची ना कोई हसरत मेरी 
कट जाए ये पल करती मन्नत यही 
शायद किसी और जहां में 
होगी मेरी सारी ख़्वाहिशें पूरी 
उगता सूरज होगी खिली सूरत मेरी 
इस कायनात में ना सही 
पर किसी कायनात में होगी 
हाथों में ख़ुशियों की लकीरें सभी 
जो नाउम्मिदियाँ हैं बिखरीं
आस की किरणें कभी तो उगेंगी 
तब तक हर गुज़रता लम्हा 
सुनेगा कहानी मेरी 
ना टूटने की ज़िद को 
क्या तोड़ पाएगी वक़्त की आँधी 
या गुज़रता पल 
देगा मुझको मज़बूती नई?

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