अफ़सोस
वैदेही कुमारीअफ़सोस होता है
चले गए वो लोग
यूँ अचानक बिन कुछ कहे
हम तो उनको अलविदा भी ना कह सके
डरे हैं इस क़दर
मिल भी ना पाए उनसे आख़िरी पहर
साँसों की क़ीमत अब पता है चली
जब कोरोना की जानलेवा लहर है चली
जिनसे बातें भी ना थी होतीं
उनके जाने की ख़बर पता जो चली
दिल दहल है उठा
आँखों से आँसुओं की लहर बह चली
मर रहे हैं अपने
जिनके संग हम कभी घूमा थे करते
थाम कर बाहें
रूठा भी करते
बस गुज़ारिश है ख़ुदा से यही
मौत की लहर अब थम जाए यहीं कहीं।