छतों पर शाम बिताना
वैदेही कुमारीछतों पर जो शामें बीतीं
कहानी कहतीं मेरे इश्क़ की
होता एक कोने पर मैं
दूसरे कोने पर तू जो होती
मिलती निगाहें
आँखों से बातें भी हैं होतीं
चिड़ियों की चहचहाट
कानों में रस घोलती
तेरा यूँ मुस्कुराना
आखें झुका शर्माना
मुहब्बत का इज़हार तो करती
थी जो अधूरी
पूरा करने की तमन्ना तो रहती
इशारों इशारों में तुझसे तेरे दिल का पता पूछती
है कोई तेरे मन में
ऐसी शंका भी तो होती
गुज़रती शाम छतों पे नाम तेरे होती
तेरे मेरे प्रेम की कहानी है कहती।