उड़ी जा रही हूँ 

15-01-2025

उड़ी जा रही हूँ 

रुचि श्रीवास्तव  (अंक: 269, जनवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

चली जा रही हूँ, 
आँखों में सपने लिए हज़ार
मदमस्त उन्मुक्त पवन सी मैं, 
उड़ी जा रही हूँ॥
 
नहीं कोई ख़बर है, 
अपनी मगन में मस्त हुई, 
अपने सपनों को करने साकार, 
उड़ी जा रही हूँ॥
 
न डरती किसी से, 
न भागती किसी से, 
है भरोसा ख़ुद में, अपनी उड़ान 
उड़ी जा रही हूँ॥
 
बहुत आई रुकावट, 
बहुत लोगों ने रोका और टोका, 
न परवाह किसी की, मैं तो हवा की तरह 
उड़ी जा रही हूँ॥
 
ख़ूब धोखा मिला, 
लोगों ने पीठ पीछे ख़ंजर चुभाए, 
कोई नाता न रख के, 
न रुककर ज़रा भी, 
उड़ी जा रही हूँ॥
 
लोगों के दोगले व्यवहार देख 
दुख मुझे भी बहुत होता
ईश्वर की इच्छा समझ 
अपना किरदार निभाती हुई 
उड़ी जा रही हूँ॥

न इच्छा किसी से, 
न आशा किसी से, 
न बैर किसी से
स्वयं पर विश्वास करती और ऊँचा 
उड़ी जा रही हूँ॥

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