सिर्फ़ तुम्हीं हो
नव पंकज जैनधूप तुम हो छाँव तुम हो,
पवन की शीतलता भी तुम्हीं हो।
सुबह तुम हो शाम तुम हो,
इनके मध्य रात्रि भी तुम्हीं हो।
सुख तुम हो, दुःख तुम हो,
दोनों का अहसास भी तुम्हीं हो।
हार तुम हो, जीत तुम हो,
दोनों का परिणाम भी तुम्हीं हो।
समुंद्र तुम हो, पृथ्वी तुम हो,
उनके ऊपर आकाश भी तुम्हीं हो।
भक्त तुम हो, भगवान तुम हो,
और मनुष्य भी तुम्हीं हो।
ज़िंदगी तुम हो, मौत तुम हो,
दोनों का अहसास भी तुम्हीं हो।
1 टिप्पणियाँ
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बेहतरीन रचना, हार्दिक शुभकामनाएँ ।