धीरज

नव पंकज जैन (अंक: 224, मार्च प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

अँधेरा कितना भी गहरा हो
सूरज के उगते ही बिखर जाएगा, 
बस थोड़ा धीरज बनाए रखो, 
यह कठिन समय भी 
धीरे धीरे निकल ही जाएगा। 
पर्वत कितना भी कठोर हो
बस हौसले की लौ जलाए रखो, 
मोम की तरह यह पर्वत भी 
धीरे धीरे पिघल ही जाएगा। 
रास्ते कितने भी दुर्गम हो
धीरे ही सही मगर सधे हुए क़दम रखते रहो, 
यह कठिन सफ़र भी धीरे धीरे कट ही जाएगा। 
तूफ़ान कितना भी प्रचंड हो
बस थोड़ा सब्र से इंतज़ार करो, 
यह तूफ़ान भी धीरे धीरे गुज़र ही जाएगा। 
संकट कितना भी विकट हो, 
बस बच्चे की तरह माँ के आँचल में छिपे रहो, 
यह संकट भी धीरे धीरे कट ही जाएगा। 
रात के बाद सुबह को आना ही है
बस थोड़ा धीरज बनाए रखो, 
यह कठिन समय भी धीरे धीरे निकल ही जाएगा। 

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