भूख
नव पंकज जैन
मैं भूख हूँ
मौत का दूजा रूप हूँ,
जिसको भी लग जाए उसको बहुत सताती हूँ।
मैं ना किसी धर्म से, ना जाति से हूँ
हर भूखे का साथ ख़ूब निभाती हूँ।
मैं बेरोज़गार और तंगहाली की बेटी हूँ,
ग़रीबी की मैं बहन हूँ और कुपोषण मेरा बेटा है।
सूखा हो या बाढ़ या कोई अकाल,
सबसे पहले मैं ही पैर फैलाती हूँ।
मैंने लोगों को मूसाहार बनाया
मच्छर, मक्खी तक खाना सिखलाया।
मैंने लोगों को चोर, उच्चका और भिखारी तक बनाया
मैं सभी दुखो की रानी हूँ।
तरक़्क़ी की दौड़ में, हथियारों की होड़ में
तकनीक की खोज में, पैसे की चकाचौंध में
दुनिया को, मैं नज़र नहीं आती हूँ।
मैं शान से, बिना रोक टोक के
अपना फ़र्ज़ निभाए जाती हूँ
और भूखों को तिल तिल कर मारती रहती हूँ।
मैं भूख हूँ
मौत का दूजा रूप हूँ
जिसको भी लग जाए उसको बहुत सताती हूँ।
मैं ना किसी धर्म से, ना जाति से हूँ
हर भूखे का साथ ख़ूब निभाती हूँ।