देश बदल रहा है

15-07-2023

देश बदल रहा है

नव पंकज जैन (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

एक दिन बापू, मेरे सपने मेंं आए और 
पूछा कि बेटा क्या चल रहा है? 
 
तो मैंने कहा, 
बाक़ी सब तो ठीक है बापू, 
बस थोड़ा सा देश बदल रहा है। 
 
आस्था के लिए, 
तो कहीं धर्म के लिए
सियासत के लिए, 
तो कहीं क्षेत्रियता के लिए
बस थोड़ा सा देश जल रहा है। 
 
पैसे के लिए, 
तो कहीं कुर्सी के लिए
ताक़त के लिए, 
तो कहीं भाई भतीजावाद के कारण
बस थोड़ा सा भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। 
 
लापरवाही के कारण, 
तो कही भ्रष्टाचार के कारण
रेल की पटरियों पर, 
तो कभी सड़कों पर
आसमान मेंं, तो कभी अस्पतालों मेंं
बस थोड़े से इंसानों का क़त्ल हो रहा है। 
 
देश की सीमाओं पर, तो कभी देश के अंदर
देश की रक्षा मेंं, तो कभी देशवासियों के लिए, 
सैनिक शहीद हो रहा है। 
वहीं एक देशवासी दूसरे देशवासी का
बस थोड़ा सा दुश्मन हो रहा है। 
 
बाढ़ से, तो कहीं सूखे से
भूख से, तो कहीं प्यास से
आम आदमी को 
बस थोड़ा सा लड़ना पड़ रहा है। 
 
नौकरी के लिए, तो कहीं बेहतर पैकेज की तलाश में
व्यापार के कारण, तो कही तरक़्क़ी की आश मेंं
बस थोड़ा सा परिवार बिखर गया है। 
 
संचार क्रांति के कारण, 
व सोशल मिडिया के ज़माने मेंं
दुनिया तो बहुत पास हो गई है
परन्तु अपने, 
बस थोड़ा सा अजनबी हो गये है। 
 
तरक़्क़ी तो बहुत की देश ने, 
नाम भी बहुत है देश का
परन्तु मनुष्य के अंदर का इंसान 
बस थोड़ा सा मर गया है। 
 
जीवन यापन का स्तर 
तो बहुत बढ़ गया है आदमी का
परन्तु ख़ुद आदमी का स्तर 
बस थोड़ा सा गिर गया है। 
 
बाक़ी सब तो ठीक है बापू, 
बस थोड़ा सा देश बदल रहा है। 

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