पौनी, एक बिल्ली

01-04-2023

पौनी, एक बिल्ली

नव पंकज जैन (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

बारिश कई दिनों से रुक रुक कर लगातार हो रही थी। इल्लू यानी ईश्वर लाल अपनी बिल्ली पौनी के साथ खेल रहा था। पौनी कभी बारिश में जाती और फिर इल्लू की गोद में चढ़ जाती थीं। इल्लू की माँ अपनी छोटी-सी रसोई में, जिसमें लगातार बारिश के कारण पानी टपकने लगा था, बड़ी परेशानी से खाना बना रही थी। इल्लू इन सभी परेशानी से अनभिज्ञ पौनी के साथ खेल रहा था। बारिश के कारण गाँव के पास की नदी का जल स्तर बढ़ता जा रहा था। इल्लू के घर के एकमात्र कमरे में भी पानी टपकने लगा था। इल्लू और पौनी दोनों को खेलते-खेलते भूख लगने लगी थी। वह पौनी के साथ रसोई में आ गया, माँ ने इल्लू को खाना परोस कर दे दिया। माँ ने पौनी के लिए एक कटोरी में दूध दे दिया। इल्लू पौनी के लिए और दूध माँगने लगा। माँ ने इल्लू को समझाया कि दूध ज़्यादा नहीं है क्यों कि बारिश के कारण आज दूध नहीं आ पाया। तो वह माँ से बोला, “इसे मेरे हिस्से का दूध दे दो। मैं आज दूध नहीं पिऊँगा।” इल्लू के ज़िद करने पर माँ ने पौनी को सारा दूध दे दिया। 

इल्लू के पिता जो गाँव में ही एक दुकान पर नौकरी करते थे, ने शाम को घर आने पर बताया कि नदी का पानी गाँव में घुस सकता है और यदि ऐसा होता है तो हमें अपना घर छोड़कर किसी ऊँची जगह पर जाकर रहना होगा। इल्लू बोला, “पर वहाँ जाकर रहेंगे कहाँ।” 

उसके पिता ने बताया, “अभी तो कुछ पक्का नहीं पता किधर रहेंगे परन्तु कुछ लोग बता रहे हैं कि पास के गाँव में जोकि थोड़ा ऊँचाई पर बसा हुआ है, वहाँ के एक स्कूल में रहने का इंतज़ाम किया जा रहा है सरकार के द्वारा।” 

इल्लू और उसकी माँ बोली, “हम तो कहीं नहीं जाने वाले अपना घर छोड़कर।” 

यह सुनकर इल्लू के पिता बोले कि अरे! घर रहेगा तभी तो रहोगे घर में और यदि घर में पानी भर गया तो क्या करोगे? वह बोले कि अच्छा चलो छोड़ो। क्या पता बारिश रुक जाए तो गाँव में पानी ही नहीं भरेगा तो कहीं भी जाने की ज़रूरत ही ना पड़े। 

रात को इल्लू, घर में पानी न भर जाए, पौनी को अपने साथ ही चारपाई पर लेकर सोया। रात को बारिश के रुक जाने के कारण बाढ़ का ख़तरा थोड़ा कम हो गया था। इल्लू और उसके माता-पिता की चिंता थोड़ी कम हो गई थी। इल्लू बहुत ख़ुश था कि उसे घर छोड़कर नहीं जाना होगा। वह अपने पिता के नौकरी पर जाने के बाद, सारे दिन पौनी के साथ खेलता रहा। 

अगले दिन सुबह लगभग चार बजे इल्लू को पौनी के मिमियाने की आवाज़ सुनाई दी, उसने उठकर देखा कि पौनी उसकी चारपाई के सिरहाने बैठी हुईं मिमियाकर उसे जगाने का प्रयास कर रही थी, इल्लू ने उठकर बल्ब जलाने लगा तो पाया कि घर में पानी भरा हुआ है, और बिजली भी नहीं आ रही थी। इल्लू ने अपने माता-पिता को जगाया। उसके पिता ने घर के बाहर आकर देखा तो अफ़रा-तफ़री मची हुई थी, चारों और पानी भरा हुआ था, पूछने पर मालूम हुआ कि गाँव से कुछ दूरी पर बने बाँध में रिसाव हो रहा है एवं बाँध के टूटने का ख़तरा बना हुआ है, सबको गाँव छोड़कर तुरंत सुरक्षित जगह पर जाना होगा। 

थोड़े समय बाद प्रशासन द्वारा लाउडस्पीकर से बताया गया कि गाँव में बाढ़ का ख़तरा है, अतः गाँव ख़ाली कराया जा रहा है, सभी लोग तुरंत बाहर निकलें। नौकाएँ आ रही हैं सभी को उनमें बैठाकर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया जाएगा एवं सभी के खाने-पीने का इंतज़ाम वहाँ पर किया जाएगा अतः कोई भी सामान साथ न लें। 

इल्लू के माता-पिता एक छोटे से थैले में थोड़ा खाने का सामान लेकर तुरंत इल्लू को लेकर बाहर आने लगे तो उसने पौनी को भी गोद में उठा लिया, मगर उसके पिता ने पौनी को साथ लेने से मना किया। इल्लू बोला कि वह पौनी के बिना नहीं जाएगा। 

इल्लू की ज़िद के आगे उसके पिता को झुकना पड़ा। बाहर नौका वाले आवाज़ लगाकर लोगों को बुला रहे थे। वे लोग भी बाहर आकर नौका में बैठने लगे तो नौका वाले ने बोला कि यह बिल्ली साथ नहीं जाएगी। इल्लू नाराज़ होकर बोला कि यह बिल्ली नहीं मेरी पौनी है। इल्लू के माता-पिता द्वारा बहुत ख़ुशामद करने के बाद नौका वाला बड़ी मुश्किल से माना। 

दस बजे तक उन्हें पास के गाँव में एक स्कूल में पहुँचा दिया गया था जहाँ उन्हें ठहराया जाना था। वहाँ पर सभी के लिए खाने व रहने का प्रबंध था। 

एक एक कप दूध का इंतज़ाम केवल बच्चों के लिए था। फिर पौनी के लिए दूध कहाँ से मिलता। इल्लू ने पौनी के लिए दूध माँगा तो उसे डाँटकर भगा दिया कि यहाँ इंसानों के लिए इंतज़ाम मुश्किल से होता है और तुझे जानवरों के लिए दूध चाहिए। इल्लू ने अपने हिस्से का दूध पौनी को दे दिया। रोज़ सुबह लगभग एक घंटा पौनी को लेकर दूध के लिए लाइन में लगता था। उस दौरान पूरे समय पौनी दूध की बाल्टी को देखकर मिमियाती रहती थी। वहाँ पर अधिकतर लोग पौनी को पसंद नहीं करते थे, इसलिए इल्लू पौनी को हमेशा अपने साथ रखता था ताकि वह इधर-उधर जाकर लोगों को परेशान न करे। 

रास्तों में पानी भरा गया था, दो दिन से वहाँ दूध के नहीं आ पाने के कारण इल्लू पौनी के लिए बहुत परेशान था। पौनी के खाने के लिए भी वहाँ कुछ नहीं था। उसने अपने माता पिता से भी पौनी के लिए कुछ खाने का इंतज़ाम करने को कहा परन्तु जहाँ बाढ़ में लोगों को खाने के लिए ही मुश्किल से मिल रहा था तो पौनी के लिए वें कहाँ से ला पाते। पौनी भूख के कारण ज़ोर-ज़ोर से मिमियाती रहती थी जिससे लोग बहुत परेशान थे। इल्लू पौनी को गोद में लेकर अक़्सर बाहर बैठा रहता था, स्कूल के चारों और पानी भर हुआ था जिस कारण से वह पौनी को ज़मीन पर नहीं छोड़ता था। 

तीसरे दिन भी दूध नहीं आ पाया था। इल्लू पौनी को गोद में लिए बैठा था। पौनी को दूर पानी में बहता हुआ एक चूहा दिखाई दिया, उसने एक झटके से इल्लू की गोद से निकलकर चूहे को दबोचने के लिए पानी में छलाँग लगा दी, मगर पानी का बहाव इतना तेज़ था कि पौनी पानी में बहने लगी। इल्लू पौनी को ख़तरे में देख ज़ोर-ज़ोर से पौनी पौनी चिल्लाने लगा। पौनी की जान ख़तरे में देख इल्लू पौनी को बचाने के लिए पानी में उतर गया परन्तु वो भी पानी में अपने आपको सँभाल नहीं पाया। शोर सुनकर वहाँ लोग एकत्र हो गए थे। इल्लू को ख़तरे में देख वहाँ तैनात सुरक्षा कर्मी ने फ़ुर्ती से इल्लू का हाथ पकड़ कर उसे पानी से बाहर खींच लिया। मगर इल्लू लगातार पौनी पौनी चिल्लाता रहा। पौनी को बचाने के लिए लोगों से गुहार करता रहा, परन्तु किसी ने भी उसकी पुकार नहीं सुनी। भला जानवर को बचाने के लिये कौन अपनी जान जोखिम में डालता। 

पौनी, ‘एक बिल्ली’, देखते-देखते पानी में बह गयी और इल्लू, ‘एक बच्चा’ रोने और चिल्लाने के अलावा कुछ नहीं कर सका, एवं वहाँ एकत्रित भीड़, ‘कुछ इंसान’ तमाशा देखने के अलावा कुछ नहीं कर सके। उन ‘कुछ इंसानों” से एक ‘भले इंसान’ को कहते सुना गया कि जहाँ इंसानों का बचाने वाले ही मुश्किल से मिलते है, वहाँ जानवर को बचाने वाला कहाँ से आता। 

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