शख़्सियत
मुनीष भाटिया
चरित्र इंसान का
विचित्र हो चला है,
ईश्वर के वज़ूद पर तो
करता है संदेह,
किन्तु इंसान में
इंसानियत की
ग़ैर मौजूदगी पर,
मौन हो रहा है।
बेशर्मी रगों में
मचल गई चहुँओर,
लालच और द्वेष
पनप रहा मानस में,
दिखावे की ख़ातिर,
मचाये वो भी शोर,
स्वयं चक्रव्यूह में
उलझा सा है।