सर झुकाते हैं

01-02-2023

सर झुकाते हैं

वीरेन्द्र जैन (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

देश के वीरो तुम्हारे सामने नतमस्तक हम हैं
दे दी आहुति तन की जिसने दिव्य है पावन अमर है
सरहदों पर जब भी छाई युद्ध की काली घटाएँ
अग्नि के आगे तुम्हारी नमन करता दिवाकर है! 
आस्माँ भी घुटनों पे आ जिनके समक्ष नतमस्त होता, 
और दिशा मदमस्त हो जिनको विजय के हार डाले, 
 
सर झुकाते हैं उन्हें जिनकी अदम्य शौर्य गाथा, 
माँएँ सुना बच्चों को देश पे क़ुर्बान होना है सिखाएँ!! 
 
देखकर लिपटा हुआ तुमको तिरंगे में पिता ने, 
सह लिया हर दर्द हँसकर ना कोई आँसू बहाए, 
घुट्टी में ही देशभक्ति जिसने पिलाई अपने हाथों, 
गोद में रख चूमती माथा वो सीने को फुलाए, 
सर झुकाता हूँ मैं बचपन की सभी उन लोरियों को, 
स्वप्न में भी हृदय में जो देशभक्ति ही जगाएँ! 
 
सर झुकाते हैं उन्हें जिनकी अदम्य शौर्य गाथा, 
माँएँ सुना बच्चों को देश पे क़ुर्बान होना है सिखाएँ!! 
 
इस आस में कि आओगे राखी पे तुम बहना से मिलने
रेशमी धागों की हाथों से वो राखी बुन रही है 
पर उलझ ना जाए हाथों में वो धागे तोड़ दिए थे, 
सरहदों पे जबसे है तनाव वो ये सुन रही है। 
अनुज को जिस कांधे पे बैठा के मेला था घुमाया
वो ही गौरव उठा कुल का कांधे पे वादा निभाए!! 
 
सर झुकाते हैं उन्हें जिनकी अदम्य शौर्य गाथा, 
माँएँ सुना बच्चों को देश पे क़ुर्बान होना है सिखाएँ!! 
 
वो मोहब्बत जो शुरू से ही तुम्हारी थी दीवानी
अग्निशिखा में लोहड़ी की ली थी क़समें सो निभानी, 
जानती थी प्रेम पहला उसका दूजा है तुम्हारा, 
दे दी विदा आँचल समेटे जीती जागती इक निशानी, 
धन्य है उर्मिला इस युग की जो कर्त्तव्य पथ पर
कुटुंब के दायित्व को पूजा समझकर जो निभाए! 
 
सर झुकाते हैं उन्हें जिनकी अदम्य शौर्य गाथा, 
माँएँ सुना बच्चों को देश पे क़ुर्बान होना है सिखाएँ!! 
 
माँ भारती पर जब भी नज़रें कोई दहशतगर्द उठाए, 
ज़िन्दा ना जाए यहाँ से चाहे कितने ‘कसाब’ आए, 
मृत्यु की आँखों में आँखें डालकर हम देखते हैं, 
किसकी ज़ुर्रत इस धरा पर इक अंश भी कब्ज़ा जमाए! 
कश्मीर से कन्याकुमारी तक अभिन्न है एक भारत, 
सम्भव हुआ है सैनिकों ने इस हेतु जब शीष कटाए!
 
सर झुकाते हैं उन्हें जिनकी अदम्य शौर्य गाथा, 
माँएँ सुना बच्चों को देश पे क़ुर्बान होना है सिखाएँ!! 

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