अमूल्य जीवन और नशा
वीरेन्द्र जैन
(अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस)
जाने कितनों ने माँगी थी और महज़ कितनों ने पाई है,
जीवन है अनमोल, ये ज़िन्दगी कुछ लोगों को मिल पाई है।
क़द्र क्यों नहीं करते इसकी धूम्रपान क्यों करते हो,
इक बार गई तो फिर जाने कब किस जनम में ये मिल पाई है!!
धुएँ के गुबार में जीवन पल पल मिटता जाता है,
एक एक कश के साथ तुम्हारा जीवन कम हो जाता है।
धूम्रपान नशे से हासिल कुछ ना, क्यों शरीर गलाते हो,
अपना और अपनों का जीवन भला क्यूँ दाँव पे ऐसे लगाते हो!
पैसा ही नहीं तन का भी नाश करता है दुष्ट नशा,
तन को असाध्य रोगों का घर बनाता है दुष्ट नशा।
परिवार बिखर जाता है इन रोगों से लड़ते लड़ते,
नरक यातना सहो न करके कुछ पलों का दुष्ट नशा!!
नशे में मानव अविवेकी हो अपनी सुध बुध खो देता है,
अपराध कुकृत्य जाने कितने वीभत्स कार्य कर लेता है।
नशा दूत है यम का पल में जीवन लील लिया करता,
नशा जो करता जीवन भर का अफ़सोस ये देता है!!
जीवन खो जाए ऐसे फ़ैशन का बोले क्या है मज़ा,
मन का भरम है “कूल” दिखोगे, क्यों करते हो ऐसी ख़ता।
मानवता को गर्व हो तुम पर ऐसा कोई काम करे,
धूम्रपान नशे से कैंसर जैसे रोग की पाओगे सज़ा!!