समय की आवाज़
डॉ. कौशल श्रीवास्तवसंकेत : अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर एक चिंतन
बंदूकों से धर्म निकले, ग्रंथ हुए बेकार
मानवता घायल हुई, दर्द का संचार।
धमाका हुआ विस्फोट का, हिल गया संसार
अंधकार छाया गगन में, धरा पर रक्त की बौछार।
शोक में है संस्कृति, रुग्ण हो गयी स्मृति
कैसे हुई यह दुर्गति? पूछ रही है संतति।
राजनीति की बहती सरिता, उच्छृंखल हैं लहरें
शासक बनना मात्र लक्ष्य है, साधन हैं बम-धमाके।
छद्म युद्ध आतंकवाद का, लोकतंत्र है दिशाहीन
एटम बम पर अंगुली, पर बन गए है शक्तिहीन।
मानवों के वंश में, क्यों दानवों का अंश है?
विज्ञान की संजीवनी में, क्यों मृत्यु का भी दंश है?
सभ्यता का यह शिखर, देख रहा है मूक बनकर
कब ढलेगी उसकी शोहरत, सतर्क रहें चारो प्रहर!!