अमृत धारा आज़ादी की
डॉ. कौशल श्रीवास्तव(आज़ादी का अमृत महोत्सव)
अमृत धारा आज़ादी की हिम शिखर से आती है
भारत की धरती सिंचित करती, सागर से मिल जाती है।
उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम गाँव-गाँव और शहर-शहर
जन जन को देती अमित सुधा, मन को हर्षित करती है,
उसकी कलकल धारा में ‘जय हिन्द’ का गुंजन है
बीच-बीच में ‘वंदे मातरम’ हमें सुनाई देता है।
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, सब हैं संगी भाई
विकास मार्ग पर चलते है, नयी-नयी चतुराई
मुक्त कंठ से गाते हैं आज़ादी का स्वागत गान
उनकी वाणी में मुखरित होता भारत का स्वाभिमान।
सात दशक और पाँच वर्ष, “अमृत महोत्सव’ आज़ादी का
इतना ही हम दीप जलाएँ, आज़ादी का पर्व मनाएँ
दूर-दूर पहुँचेगी दीप्ति, सुख-शान्ति और समृद्धि
नमन नमन हे वीर शहीदों! तुम हो अमर विभूति!
मैं भारत का एक अंश हूँ, क्षितिज पार रहता हूँ
तन में भारत की मिट्टी है, उसे नमन करता हूँ
भारत माता का फैला आँचल हमें मुग्ध कर देता है
सत्य अहिंसा का सुवास मुझे द्रवित कर देता है।
मैं भारत का एक अंश हूँ, ज्ञान-दीप का सेवक हूँ
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का, शंखनाद करता हूँ
अमृत धारा आज़ादी की, उसे नमन करता हूँ
युगों युगों तक रहे प्रबल यही कामना करता हूँ!
अमृत धारा आज़ादी की हिम शिखर से आती है
भारत की धरती सिंचित करती, सागर में मिल जाती है!
डॉ.। कौशल किशोर श्रीवास्तव
मेलबोर्न (ऑस्ट्रेलिया), अगस्त २०२२