सब वादे भूले जैसे हैं
जयराम जय
प्रगति हुई
कुछ गाँव हमारे
बस वैसे के ही वैसे हैं
छप्पर वही
वही कोठरियाँ
इधर-उधर
लटकी पोटलियाँ
बातें रहें
बनाते हरदम
वही कहानी वाली परियाँ
नयी योजना
फिर लाए हैं
आ सकते शायद पैसे हैं
जाँचें हुईं
‘कमीशन’ लेकर
ख़ुश कर देते पट्टे देकर
खाना-पूरी
करके केवल
ग्राम सभा बँटवाए ऊसर
लागत भर
पैदा मुश्किल हो
मूढ़ बने जैसे-तैसे हैं
बस वादों के
हैं आवर्तन
युग सापेक्ष हुए परिवर्तन
धेला भर का
काम न करते
झूठ-मूठ के महा प्रलोभन
सत्तासीन
हुए हैं जबसे
सब वादे भूले जैसे हैं