सब वादे भूले जैसे हैं

01-07-2023

सब वादे भूले जैसे हैं

जयराम जय (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


प्रगति हुई 
कुछ गाँव हमारे
बस वैसे के ही वैसे हैं
 
छप्पर वही 
वही कोठरियाँ
इधर-उधर 
लटकी पोटलियाँ
बातें रहें
बनाते हरदम
वही कहानी वाली परियाँ
 
नयी योजना
फिर लाए हैं
आ सकते शायद पैसे हैं
 
जाँचें हुईं 
‘कमीशन’ लेकर
ख़ुश कर देते पट्टे देकर
खाना-पूरी 
करके केवल
ग्राम सभा बँटवाए ऊसर
 
लागत भर 
पैदा मुश्किल हो
मूढ़ बने जैसे-तैसे हैं
 
बस वादों के 
हैं आवर्तन
युग सापेक्ष हुए परिवर्तन
धेला भर का 
काम न करते
झूठ-मूठ के महा प्रलोभन
 
सत्तासीन 
हुए हैं जबसे
सब वादे भूले जैसे हैं 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें