आकुल आकाश हो गया

15-09-2022

आकुल आकाश हो गया

जयराम जय (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

सिमट गये
इन्द्र धनुष बाँहों के 
आकुल आकाश हो गया 
 
नाच रही किरन-किरन 
रंग का रचाव लिये
शब्द-शब्द प्राण हँसे
प्यार का प्रभाव लिये 
 
हौले से
तोड़ बाँध संयम के
अधरों में प्यास बो गया
 
बहकती बहार हँसी
मौसम के संग-संग
नेह बेल छैल गई
तरुवर पर अंग-अंग 
 
अधरों में
महक गया चन्दन वन
जाने क्या ख़ास हो गया
 
आतुर थे दोनों तट
मिलने को आर-पार
नदिया में डूब-डूब 
जाने को बार-बार 
 
दहक रही 
मधुगन्धी साँसों को
सोंधा विश्वास हो गया!

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