दिल चाहता है

01-01-2024

दिल चाहता है

जयराम जय (अंक: 244, जनवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

तेरे पास आने को दिल चाहता है
फिर से मुस्कराने को दिल चाहता है 
 
बहुत दिन रहे दूर हैं जान से, अब
गले से लगाने को दिल चाहता है 
 
बहुत थक गईं मेरी तन्हाइयाँ हैं
तेरा साथ पाने को दिल चाहता है 
 
चलो साथ मिलके चले हम कहीं भी
बहुत दूर जाने को दिल चाहता है 
 
जहाँ तुमने अक़्सर गिराई है बिजली
वहीं घर बनाने को दिल चाहता है 
 
बड़ी ख़ूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी
वहीं डूब जाने को दिल चाहता है 
 
अजंता की मूरत सी सूरत के आगे
'जय' सर झुकाने को दिल चाहता है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें