दिल चाहता है
जयराम जय
तेरे पास आने को दिल चाहता है
फिर से मुस्कराने को दिल चाहता है
बहुत दिन रहे दूर हैं जान से, अब
गले से लगाने को दिल चाहता है
बहुत थक गईं मेरी तन्हाइयाँ हैं
तेरा साथ पाने को दिल चाहता है
चलो साथ मिलके चले हम कहीं भी
बहुत दूर जाने को दिल चाहता है
जहाँ तुमने अक़्सर गिराई है बिजली
वहीं घर बनाने को दिल चाहता है
बड़ी ख़ूबसूरत हैं आँखें तुम्हारी
वहीं डूब जाने को दिल चाहता है
अजंता की मूरत सी सूरत के आगे
'जय' सर झुकाने को दिल चाहता है