भूखा अंकित मचल गया,
उसने काटी गबड़ी।
बोला मम्मी खाना दे दो,
भूख लगी है तगड़ी।
मम्मी बोलीं पेड़ कट गये,
नहीं बची है लकड़ी।
आ-जा रखकर गैस बना दूँ,
तेरे ख़ातिर रबड़ी॥
2 टिप्पणियाँ
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बहुत अच्छी कविताएँ हैं। जैसे आज के समाज का दर्पण है।
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Bahut Bahut Dhanyabad sir..