बच्चों के लिए मोबाइल फोन देना लाभदायक है या हानिकारक है?
डॉ. उमेश चन्द्र सिरसवारीपरिचर्चा
आज मोबाइल हम सबके जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है। व्यक्ति के लिए मोबाइल इतना ज़रूरी हो गया है कि थोड़ी देर के लिए व्यक्ति को इससे अलग कर दिया जाए, तो लगता है, जैसे शरीर का कोई अंग अलग कर दिया गया है। व्यक्ति ऐसे छटपटाने लगता है, जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। मोबाइल क्रांति ने जहाँ आज के मानव का जीवन बदला है, तो वहीं पढ़ने-लिखने का माहौल भी ख़त्म कर दिया है। मोबाइल से व्यक्ति घंटे का काम मिनट में और मिनटों का काम सैकेंडों में कर लेता है। व्यापारी लोग इसका सदुपयोग कर अपने व्यापार को ऊँचाइयाँ दे रहे हैं, सरकारी कामकाज से लेकर प्राइवेट सेक्टर तक मोबाइल ने बड़े बदलाव किए हैं। कोरोना काल में इसी मोबाइल क्रांति ने लोगों को एक-दूसरे से जोड़े रखा था और लोगों को सिखाया था कि इस टेक्नॉलोजी का सही सदुपयोग किया जाए, तो हम क्या-क्या लाभ पा सकते हैं। लेकिन जब हम मोबाइल के द्वारा मानव के जीवन में हानि की बात करते हैं, तो सबसे बड़ा तो यही करण है कि इसने पठन-पाठन के माहौल पर असर डाला है। छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक को मोबाइल की लत लग चुकी है। हमारे बच्चे पढ़ाई के बहाने मोबाइल पर क्या देख रहे हैं, यह सवाल हर अभिभावक के लिए गंभीर है। इसी समस्या को लेकर हमने अपने मित्रों, विद्यार्थियों से वार्ता की। आइए, जानते हैं, उनकी क़लम से, उनकी ही जुवानी-
प्रस्तुति
डॉ. उमेशचन्द्र सिरसवारी
चंदौसी, सम्भल (उ.प्र.)
मो. 9410852655
1.
बच्चों को मोबाइल प्रयोग करने की समय-सीमा करें निर्धारित
आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन बच्चों की ज़िन्दगी का एक अनिवार्य हिस्सा बन गए है। यह तकनीक संवाद का एक साधन होने के साथ-साथ शिक्षा और मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण स्रोत भी है। लेकिन क्या बच्चों को मोबाइल देना उचित है? इस पर हमें विचार करना ज़रूरी है।
लाभ
बच्चों को मोबाइल देने के कई फ़ायदे हैं। सबसे पहले मोबाइल के ज़रिए बच्चे इंटरनेट से जुड़ सकते हैं। वे ऑनलाइन शैक्षिक सामग्री, वीडियो और ज्ञानवर्धक ऐप्स का उपयोग करके अपनी पढ़ाई को बेहतर बना सकते हैं। इससे उन्हें नई जानकारी हासिल करने और कौशल विकसित करने का अवसर मिलता है। दूसरा मोबाइल बच्चों को तकनीकी कौशल सीखने में मदद करता है, जो भविष्य में उनके कैरियर के लिए आवश्यक हो सकता है। आज के कार्यस्थल पर डिजिटल कौशल की बहुत माँग है। इसके अतिरिक्त मोबाइल के ज़रिए बच्चे अपने दोस्तों और परिवार से जुड़े रह सकते हैं, जिससे उनकी सामाजिकता बढ़ती है।
हानियाँ
हालाँकि बच्चों को मोबाइल देने के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। अत्यधिक स्क्रीन टाइम स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है, जैसे आँखों की समस्याएँ, सिरदर्द और मोटापे का जोखिम। साथ ही मोबाइल का ज़्यादा इस्तेमाल मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है, जैसे चिंता और अवसाद। बच्चों को सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग की लत लगने का ख़तरा भी रहता है, जिससे उनकी पढ़ाई और सामाजिक जीवन प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा, अनधिकृत सामग्री और साइबर बुलिंग का ख़तरा भी बढ़ जाता है, जो बच्चों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। इसलिए बच्चों को मोबाइल देना एक जटिल विषय है। इसके कई लाभ होने के बावजूद, माता-पिता को इसके हानिकारक प्रभावों पर ध्यान देना चाहिए। उचित निगरानी, समय की सीमाएँ निर्धारित करना और स्वस्थ उपयोग के नियम बनाना महत्त्वपूर्ण है। इस संतुलन के ज़रिए, हम बच्चों को मोबाइल का सही तरीक़े से उपयोग करने में मदद कर सकते हैं, जिससे वे इसका लाभ लेते हुए सुरक्षित रह सकें।
श्रुति पाण्डेय
(शोधार्थी, इतिहास)
आवासीय परिसर,
राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
2.
बच्चों पर मोबाइल फोन का प्रभाव: लाभ और जोखिम
बच्चों पर मोबाइल फोन का प्रभाव एक जटिल मुद्दा है, जो उल्लेखनीय लाभ और महत्त्वपूर्ण जोखिम दोनों प्रस्तुत करता है। एक ओर मोबाइल संचार की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे माता-पिता अपने बच्चों से जुड़े रह सकते हैं और जीपीएस ट्रैकिंग जैसी सुविधाओं के माध्यम से सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। वे शैक्षिक संसाधनों और ऐप्स तक पहुँच भी प्रदान करते हैं जो कि सीखने और डिजिटल साक्षरता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। दूसरी ओर अत्यधिक मोबाइल उपयोग से मोटापा, नींद में परेशानी और दृष्टि संबंधी समस्याओं सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया के दबाव और साइबरबुलिंग के कारण बच्चों में चिंता और अवसाद बढ़ सकता है। अनुचित सामग्री और ऑनलाइन शिकारियों के संपर्क में आना एक और गंभीर चिंता का विषय है। मोबाइल फोन के उपयोग के लाभों और नुक़्सान के बीच संतुलन बनाने के लिए माता-पिता की ओर से सावधानीपूर्वक निगरानी की जानी होनी चाहिए, जिसके द्वारा बच्चों की भलाई की रक्षा के लिए सीमाएँ निर्धारित करने के साथ-साथ ज़िम्मेदार डिजिटल व्यवहार को बढ़ावा दिया जा सके।
सलोनी
(शोधार्थिनी, ऐन.सी.ई.आर.टी. अध्येता)
दयालबाग एजूकेशनल इंस्टीट्यूट (डीम्ड यूनिवर्सिटी) दयालबाग, आगरा।
3.
बच्चों के लिए मोबाइल पर कार्य करने की बने समय-सीमा
आज का समय तकनीक का समय है। हर क्षेत्र में तेज़ी से विकास करती आधुनिक दुनिया में हर अभिभावक अपने बच्चे को कम से कम उम्र में अधिक समझदार बनाना चाहता है। वे उनकी हर माँग को पूरी करने के लिए तत्पर रहते हैं। इसके लिए वे अक्सर बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा देते हैं। परवरिश की कठिनाई से बचने और बच्चे का मन बहलाव करने में अक्सर अभिभावक यह भूल जाते हैं कि इस उम्र में मोबाइल का उपयोग उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। इसकी लत से बच्चों के व्यवहार में चिड़चिड़ापन और आक्रामकता आती है। कई अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों में भी यह अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसे में उन्हें नियमित एक समय-सीमा निर्धारित कर अपनी उपस्थिति में बच्चों को मोबाइल पर कार्य करने में सहायता करनी चाहिए।
स्मृति यादव
शोधार्थी, हिंदी विभाग,
दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।
4.
जिनके कंधों पर भविष्य का भार, उन्हें बचाना होगा
हर घटना के दो पहलू होते हैं। सकारात्मक और नकारात्मक। दुनिया में कोई भी आविष्कार, खोज, रचना मनुष्य जाति के जीवन को सुगम बनाने के लिए, भौतिक दूरियों को कम करने के लिए, सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों के विकास के लिए होती है। समय, काल और परिस्थितियों के बदलते परिदृश्य में वही चीज़, जब वो आमजन तक पहुँच जाती है, तो उसका प्रभाव समाज, परिवार और बालमन पर पड़ता है। किसी शायर ने क्या ख़ूब लिखा है:
“न दो मोबाइल बच्चों को तो लड़ जाते हैं,
दे-दो मोबाइल हाथ में तो बिगड़ जाते हैं।”
माता-पिता बच्चों की ज़िद के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। उन्हें मल्टीमीडिया फोन दिलाकर ख़ुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं। जबकि बच्चे मोबाइल पर क्या सर्च कर रहे हैं? वे क्या देख रहे हैं? किससे चैटिंग कर रहे हैं? कैसे वीडियोज़ और फोटोज़ उनकी गैलरी में हैं? इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं, जो एक अकल्पनीय चिंता का विषय है। बच्चे मोबाइल चलाते-चलाते कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं, इसका अंदाज़ा माता-पिता नहीं लगा पाएँगे।
आज दुनिया भर में बच्चे सोशल मीडिया के दुरुपयोग का शिकार हो रहे हैं। उन्हें इंटरनेट पर ब्लैकमेल किया जा रहा है। अश्लील फोटोज़ माँगे जा रहे हैं। जो देखना नहीं चाहते वो सरेआम दिखाया जा रहा है। ऐसे में हम अपने बच्चों के मानसिक संतुलन को सँभाल सकें, हमारे लिए बहुत बड़ी पूँजी होगी। अगर माता-पिता की निगरानी में बच्चे मोबाइल का प्रयोग कर रहे हैं, तो ठीक है कि उन्हें बहुत ज़रूरी चीज़ देखने की अल्पावधि दी जा सकती है। अगर ऐसा नहीं है, तो मोबाइल देना ख़तरों से ख़ाली नहीं होगा। जिनके कंधों पर भविष्य का भार रखा जाना है, उनमें ऐसी लत तो बरदाश्त नहीं की जाएगी।
राजकुमार बघेल प्रभात ‘अश्म’
ग्रा. खिजरपुर, पो. बस्तर मऊ
ज़िला-कासगंज (उ.प्र.)-207242
मो. 7398953335
5.
बच्चों को मोबाइल के फ़ायदे और नुक़्सान बताने होंगे
आज का युग अंतरजाल का युग है। इसका व्यवहार हम ज़्यादातर मोबाइल के सहारे करते हैं, जिस कारण मोबाइल फोन आजकल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। प्रारंभिक चरण में इसका उपयोग सिर्फ़ संचार के माध्यम के रूप में किया जाता था। समय के साथ-साथ इसका अभ्युत्थान हुआ एवं यह मिनी कंप्यूटर के रूप में काम करने लगा। मोबाइल का सदुपयोग करते-करते कब यह हम पर हावी हो गया, हमें एहसास तक नहीं हुआ। सबसे गंभीर विनाशकारी समस्या तब उत्पन्न हुई, जब यह बच्चों के हाथ लगा।
सबसे पहले बच्चों में आदत और लत की समस्या हो सकती है। वे मोबाइल पर इतना अधिक समय बिताने लगते हैं, जिससे उनके विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है। बच्चों के शारीरिक विकास, मानसिक स्वास्थ्य, शैक्षणिक प्रदर्शन, नींद चक्र, व्यक्तित्व विकास, सृजनात्मकता आदि में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। बच्चों में मोटापा, आँखों में तनाव, आत्म-नियंत्रण में कठिनाई, समस्या-समाधान करने की क्षमता में कमी जैसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं। बच्चों के माध्यम से ऑनलाइन फ़्रॉड जैसी समस्या भी आम हो गयी है। हालाँकि मोबाइल के कई सदुपयोग भी हैं। जैसे कि बच्चे अपने माता-पिता से संपर्क में रह सकते हैं। आपातकालीन स्थितियों में मदद के लिए संपर्क कर सकते हैं। गेम्स और वीडियोज बच्चों को मनोरंजन प्रदान करते हैं और तकनीकी शिक्षा प्राप्त होती है।
सिक्के के दो पहलू के तरह मोबाइल व्यवहार के फ़ायदे और नुक़्सान दोनोंं हैं। बच्चों को मोबाइल देने से पहले माता-पिता या अभिभावकों को बच्चे की आयु, उपयोग की समय-सीमा, ऑनलाइन सुरक्षा की शिक्षा आदि पक्षों को ध्यान में रखना होगा।
लिप्सारानी गिरी
शिक्षिका
सरकारी उच्च विद्यालय, दुर्दुरा, ओड़िशा
6.
मोबाइल का अधिक प्रयोग सोचने-समझने की क्षमता कम करता है
आज मोबाइल फोन हमारे जीवन में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। आमतौर पर मोबाइल फोन दैनिक जीवन में संचार का सबसे तेज़ साधन माना जाता है, हम अपने दोस्तों के साथ आसानी से संपर्क या संदेश, हमारे रिश्तेदार जहाँ भी हों, उनसे हम तुरंत संपर्क कर सकते हैं। दूसरा मोबाइल फोन लोगों के लिए मनोरंजन का एक साधन भी है। मोबाइल फोन से बच्चों के लिए समय प्रबंधन और संगठन में मदद तथा इससे पढ़ाई में मदद मिलती है। लेकिन वहीं इसके अधिक प्रयोग करने से बच्चों में अवसाद और चिड़चिड़ेपन की समस्या हो सकती है। उनमें सोचने-समझने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। मोबाइल वैज्ञानिकों के द्वारा दी गई एक ऐसी टेक्नॉलोजी है, जिसका हम सही तरह से उपयोग करें, तो ही अच्छा है वरना इसके कई दुस्प्रभाव हैं। सभी अभिभावकों को इस बात का ध्यान रखकर बच्चों को मोबाइल फोन उपयोग करने की अनुमति देनी चाहिए।
दीपिका मौर्या
बीएससी, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी
पता: छाँही, सारनाथ, वाराणसी
7.
मोबाइल एक-दूसरे से जुड़ने और संवाद का ज़रिया है
मोबाइल आज की ज़रूरत बन गया है। मोबाइल चलाने के कई फ़ायदे और नुक़्सान हैं। मोबाइल फोन लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने और संवाद करने का एक आसान और सुविधाजनक तरीक़ा प्रदान करता है। फोन कॉल, टेक्स्ट संदेश, ईमेल, सोशल मीडिया और वीडियो चैट के माध्यम से किसी से भी संपर्क कर सकते हैं। यह हमें दुनिया भर से जानकारी तक पहुँच प्रदान करता है। लेकिन वहीं जब हम बच्चों को मोबाइल फोन देते हैं, तब इस पर विचार करने की आवश्यकता है। मोबाइल फोन के लाभ और हानि दोनोंं हैं। इसका ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करना आँखों में दर्द का कारण बन सकता है। इंटरनेट के अधिक प्रयोग करने से बच्चों में अनिद्रा जैसी समस्या होती है, उनका मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसके अत्यधिक उपयोग व सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म जैसे-इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक इत्यादि पर अधिक सक्रिय रहने से मस्तिष्क पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को सीमित समय के लिए इसका उपयोग करने तथा सोशल मीडिया से दूरी रखने के प्रयास करने चाहिए, तभी बच्चों के मानसिक विकास में मोबाइल सहायक हो सकता है।
प्रभा राघव
शिक्षा: एम.ए. (समाजशास्त्र)
ग्रा. मुल्हैटा, पो. बहजोई,
तह. चंदौसी, ज़ि. सम्भल
(उ.प्र.)-202410
8.
बच्चों के स्मार्ट फोन उपयोग करते समय अभिभावक बरतें सावधानी
आज हमारे समाज में एक ऐसी समस्या या कहें कि उलझन पैदा हो रही है, जिससे समाज के बड़े बुज़ुर्ग एवं माता-पिता बहुत चिंतित हैं। वो ये है कि आज का समय आधुनिकता का है और ये आधुनिकता प्रत्येक वर्ग को अपनी तरफ़ आकर्षित कर रही है और करे भी क्यों न, क्योंकि आधुनिकता और डिजिटलीकरण के संयोग से मनुष्य दिन व दिन नए-नए आयामों पर पहुँचकर प्रत्येक दिन कुछ न कुछ नया विकास कर रहा है, जिससे हमारे जीवन के बहुत से कार्य आसान कर दिए हैं। अब हमारे बुज़ुर्गों एवं माता-पिता अपने बच्चों को इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने में हिचकिचाहट और उत्साह दोनों उत्पन्न होता है। इस बात के बहुत से कारण हैं कि क्या हम अपने बच्चों को स्मार्ट फोन दें तो क्या वो इसका अच्छा उपयोग कर पाएगा। आजकल होता क्या है कि हमारे समाज के बहुत से युवा स्मार्ट फोन का उपयोग करते हैं और वो इससे बहुत अच्छी जानकारी भी प्राप्त करते हैं, जो कि उनके हित में कार्य करता है। वहीं कुछ बच्चे या युवा इसी स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करके इसका दुरुपयोग करते हैं एवं उनके लिए ये सही साबित नहीं होता है और अक्सर तो हर घर में देखा गया है कि बच्चों को दो से तीन साल की उम्र में ही स्मार्ट फोन की लत लग जाती है, जो कि उनको ख़ुद नहीं लगती है बल्कि उनके माता-पिता के द्वारा लगाई जाती है। क्योंकि वो अपने बच्चों को ज़्यादा समय नहीं दे पाते, इसलिए बच्चों को मोबाइल देकर उसकी लत लगवाई जाती है। वहीं जब वो बड़ा होता है, तो उसकी आँखों पर चश्मा और शारीरिक कमज़ोरी का सामना करना पड़ता है, जो कि एक युवा के लिए अच्छा नहीं है। जब हमारे युवा पहले से ही आँखों से और शरीर से कमज़ोर होंगे तो हमारे देश के युवाओं का परिणाम क्या होगा? ये एक बहुत ही गंभीर विषय है, जिसके बारे में हमारे माता-पिता को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।
स्मार्ट फोन के उपयोग के साथ-साथ ये सावधानियाँ भी दिखाएँ अभिभावक
अपने बच्चों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताएँ। उनकी समस्याएँ सुनें तथा अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ने के लिए उनको प्रेरित करें। अपने बच्चों को अपने धर्म के बारे में अच्छी अच्छी जानकारी दें तथा उनको रामायण एवं महाभारत जैसे महान धार्मिक ग्रंथों के बारे में जानकारी दें। स्मार्ट फोन के सही दिशा में उपयोग की जानकारी दें।
उज्जवल राघव
एम.ए. (राजनीतिशास्त्र)
ग्रा. मऊ अस्सू, पो. नरौली,
तह. चंदौसी, ज़ि. सम्भल
(उ.प्र.)