राजनीति
विवेक कुमार तिवारी
सबने अपनाया प्रजातंत्र,
सफलता का है जो मूलमंत्र।
लेकिन दिखती प्रजा नहीं अब
सिर्फ़ दिखता सरकारी तंत्र॥
राजनीति के कुटिल जाल में,
मासूम प्रजा को नेता भूले।
जाति-धर्म की राजनीति से,
बँटवारे का विष वो घोले॥
सत्ता ही है मूलमंत्र अब,
पाने को कुछ भी कर जाएँगे।
चाहे लोग मुसीबत में हो,
पाकर कुर्सी उनको भूल जाएँगे॥
जब आए चुनाव तब वो,
घर-घर दौड़ लगाएँगे।
सबसे रिश्ता जोड़-जोड़कर,
पैरों पर गिर जाएँगे॥
जीतकर फिर आगे जाएँगे,
पीछे सबको भूल जाएँगे।
ढूँढ़े से भी नहीं मिलेंगे,
ईद का चाँद बन जाएँगे॥
दोबारा जब घर आएँगे,
नई उम्मीद जगाएँगे।
अबकी बार यदि मुझे जिताया,
इलाक़े को स्वर्ग बनाएँगे॥
अपना मत सोच कर देना,
जाति-धर्म में ना तुम पड़ना।
करे राष्ट्र निर्माण जो नेता,
उसे सदा ही तुम अब चुनना॥
सोच समझ मतदान करोगे,
तभी बनेगा राष्ट्र महान।
आपस में मिल-जुलकर रहना,
तभी कहलाओगे श्रेष्ठ इंसान॥