परिवार
विवेक कुमार तिवारी
पिता करते देखभाल, माँ करती प्यार।
इन दोनों में ही समाया सारा संसार॥
बचपन में करते हम मनमानी
करते रहते ख़ूब शैतानी।
माँ मन ही मन मुस्काती,
बड़े प्यार से हमको समझाती।
पढ़-लिखकर तुम बनो महान,
परिवार का तुम बढ़ाओ मान॥
पापा करते सबकी चिंता,
उनसे ही सब हमको मिलता।
उनका प्यार, दुलार और फ़िक्र,
जिसका कोई करता न ज़िक्र॥
दादा-दादी घर का वटवृक्ष,
उनसे ही सब लेते सीख।
उनका प्रेम जो समझ न पाता,
वह जीवन भर है पछताता॥
भाई-बहन हैं घर का अभिमान,
उनसे बढ़ता कुटुंब का मान।
सुझाव से उनके मिटे अज्ञानता,
फिर जीवन में मिले सफलता॥
पत्नी होती घर का धन,
ख़ुशियों से भरती जीवन।
उसकी अहमियत समझ जो पाएगा,
परिवार में ख़ुशियाँ पाएगा॥
जो परिवार का महत्त्व समझ पाएगा,
जीवन उसका श्रेष्ठ बन जाएगा॥